मैं कैसे चैन से रह सकता हूँ, जबकि सूर फूँकने पर नियुक्त फ़रिश्ते ने सूर को मुँह से लगा रखा है और (सूर फूँकने की तैयारी…

मैं कैसे चैन से रह सकता हूँ, जबकि सूर फूँकने पर नियुक्त फ़रिश्ते ने सूर को मुँह से लगा रखा है और (सूर फूँकने की तैयारी के तौर पर) अपनी पेशानी को झुका रखा है और आदेश की प्रतीक्षा में कान लगा रखा है कि आदेश मिलते ही सूर फूँक दे

अबू सईद ख़ुदरी (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: मैं कैसे चैन से रह सकता हूँ, जबकि सूर फूँकने पर नियुक्त फ़रिश्ते ने सूर को मुँह से लगा रखा है और (सूर फूँकने की तैयारी के तौर पर) अपनी पेशानी को झुका रखा है और आदेश की प्रतीक्षा में कान लगा रखा है कि आदेश मिलते ही सूर फूँक दे। मुसलमानों ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! ऐसे में हम क्या कहें? तो आपने फ़रमाया: तुम कहा करोः حسبُنا اللهُ ونِعْمَ الوَكيلُ توكَّلنا على اللهِ ربِّنا" (हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है और वह अच्छा काम बनाने वाला है। हमने अल्लाह पर भरोसा किया, जो हमारा रब है।) कभी- कभी सुफ़यान "توكَّلنا على اللهِ" के स्थान पर कहते थेः "على الله توكَّلنا"।

[सह़ीह़] [इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है। - इसे अह़मद ने रिवायत किया है।]

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आख़िरत (परलोक) का जीवन