बरा बिन आज़िब -रज़ियल्लाहु अन्हु- की हदीस के आलोक में क़ब्र की नेमतों और यातनओं का वर्णन

बरा बिन आज़िब -रज़ियल्लाहु अन्हु- की हदीस के आलोक में क़ब्र की नेमतों और यातनओं का वर्णन

बरा बिन आज़िब -रज़ियल्लाहु अंहु- कहते हैं कि हम अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ एक अनसारी के जनाज़े में निकले। हम क़ब्र के पास पहुँचे। अभी मुर्दे को दफ़न करने का कार्य संपन्न नहीं हुआ था। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- बैठ गए और हम भी आपके आस-पास बैठ गए। ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे हमारे सरों पर पक्षी बैठे हों। आपके हाथ में एक लकड़ी थी, जिससे आप धरती को कुरेद रहे थे। इसी बीच आपने अपना सर उठाया और फ़रमायाः "क़ब्र के अज़ाब से अल्लाह की पनाह माँगो।" आपने यह बात दो या तीन बार कही। एक रिवायत में यह इज़ाफ़ा हैः "मुर्दा, लोगों के जूतों की आहट सुनता है, जब लोग वहाँ से वापस चल देते हैं औरउस समय उससे कहा जाता है कि ऐ अमुक, तेरा रब कौन है, तेरा दीन क्या है और तेरा नबी कौन है? हन्नाद कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमायाः "उसके पास दो फ़रिश्ते आते हैं, उसे बिठाते हैं और उससे कहते हैंः तेरा रब कौन है? वह कहता हैः मेरा रब अल्लाह है। दोनों उससे पूछते हैंः तेरा धर्म क्या है? वह कहता हैः मेरा धर्म इसलाम है। फिर दोनों उससे पूछते हैंः यह कौन हैं, जो तुम्हारे बीच भेजे गए थे?" आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- फ़रमाते हैं: "वह कहता हैः वह अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हैं। दोनों फ़रिश्ते कहते हैंः तुम्हें कैसे पता चला? वह कहता हैः मैंने अल्लाह की किताब पढ़ी और उस पर विश्वास किया तथा उसकी पुष्टि की।" जरीर -रज़ियल्लाहु अंहु- की हदीस में यह इज़ाफ़ा हैः इसी का ज़िक्र सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह के इस फ़रमान में हैः {يُثَبِّتُ اللهُ الذين آمنوا} (अल्लाह उन लोगों को, जो ईमान लाए, स्थिरता प्रदान करता है।) [सूरा इबराहीमः 27] (फिर दोनों की रिवायतों के शब्द एक जैसे हैं) : आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमायाः "तब एक आवाज़ देने वाला आकाश से आवाज़ देता हैः मेरे बंदे ने सच कहा है। अतः, उसके लिए जन्नत का बिछौना बिछा दो, उसके लिए जन्नत की ओर एक द्वार खोल दो और उसे जन्नत का वस्त्र पहना दो।" आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- फ़रमाते हैंः "फिर उसके पास जन्नत की हवा और उसकी ख़ुशबू आने लगती है।" आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- फ़रमाते हैंः "उसकी क़ब्र को वहाँ तक फैला दिया जाता है, जहाँ तक उसकी नज़र जाए।" फिर आपने काफ़िर की मृत्यु का ज़िक्र किया और फ़रमायाः "उसकी रूह को उसके शरीर में लौटाया जाता है और उसके पास दो फ़रिश्ते आते हैं तथा उसे उठाकर बिठाते हैं और उससे कहते हैंः तेरा रब कौन है? वह कहता हैः हाय, हाय! मैं नहीं जानता। दोनों कहते हैंः तेरा धर्म किया है? वह कहता हैः हाय, हाय,हाय! मैं नहीं जानता। दोनों कहते हैंः यह व्यक्ति कौन हैं, जो तुम्हारे बीच भेजे गए थे? वह कहता हैः हाय, हाय! मैं नहीं जानता। इतने में एक आवाज़ देने वाला आकाश से आवाज़ देता हैः इसने झुठ कहा है। अतः, इसके लिए आग का बिछौना बिछा दो, इसे आग का वस्त्र पहना दो और इसके लिए जहन्नम की ओर एक द्वार खोल दो।" आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- फ़रमाते हैंः "इसके बाद उसके पास जहन्नम की तपिश और उसकी गर्म हवा आती रहती है।" आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- फ़रमाते हैंः "तथा उसकी क़ब्र को उसके ऊपर तंग कर दिया जाता है, यहाँ तक कि उसकी एक तरफ़ की पसलियाँ दूसरी तरफ़ आ जाती हैं।" जरीर -रज़ियल्लाहु अन्हु- की हदीस में यह इज़ाफ़ा है कि आपने फ़रमायाः "फिर उस पर एक अंधे तथा गूँगे फ़रिश्ते को निर्धारित कर दिया जाता है, जिसके पास लोहे का एक हथोड़ा होता है कि यदि उसे पर्वत पर मारा जाए, तो वह मिट्टी बन जाए।" आप फ़रमाते हैंः "वह फ़रिश्ता उस हथोड़े से उसे ऐसी मार मारता है कि जिसे पूरब और पश्चिम के बीच की सारी चीज़ें, इनसान और जिन्न के सिवा,सुनती हैं और वह मिट्टी बन जाता है।" आप फ़रमाते हैंः "फिर उसमें जान लौटा दी जाती है।"

[सह़ीह़] [इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।]

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क़ब्र की भयावहताएँ