ऐ अल्लाह! मैं तेरी शरण में आता हूँ विवशता, सुस्ती, कायरता, अधिक बुढ़ापे और कंजूसी से। तेरी शरण में आता हूँ क़ब्र के…

ऐ अल्लाह! मैं तेरी शरण में आता हूँ विवशता, सुस्ती, कायरता, अधिक बुढ़ापे और कंजूसी से। तेरी शरण में आता हूँ क़ब्र के अज़ाब से तथा तेरी शरण में आता हूँ जीवन और मृत्यु के फ़ितने से।

अनस बिन मालिक (रज़ियल्लाहु अंहु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) कहा करते थेः ऐ अल्लाह! मैं तेरी शरण में आता हूँ विवशता, सुस्ती, कायरता, अधिक बुढ़ापे और कंजूसी से। तेरी शरण में आता हूँ क़ब्र के अज़ाब से तथा तेरी शरण में आता हूँ जीवन और मृत्यु के फ़ितने से। एक अन्य रिवायत में हैः तथा क़र्ज़ के बोझ और लोगों के प्रभुत्व से।

[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है। - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

التصنيفات

मासूर दुआएँ