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अगर तुम उहुद पर्वत के बराबर भी सोना खर्च कर दो तो अल्लाह उसे ग्रहण नहीं करेगा, जब तक तक़दीर पर ईमान न रखो और इस बात पर…
अगर तुम उहुद पर्वत के बराबर भी सोना खर्च कर दो तो अल्लाह उसे ग्रहण नहीं करेगा, जब तक तक़दीर पर ईमान न रखो और इस बात पर विश्वास न रखो कि जो चीज़ तुम्हें मिलने वाली है, वह तुम्हारे हाथ से निकल नहीं सकती और जो तुम्हें नहीं मिलने वाली, वह तुम्हारे हाथ लग नहीं सकती। अगर तुम इसके सिवा किसी और आस्था पर मरोगे तो जहन्नम में प्रवेश करने वालों में शामिल हो जाओगे।
इब्ने दैलमी कहते हैंः मैं उबै बिन काब के पास आकर बोला कि मेरे दिल में तक़दीर के बारे में थोड़ी-सी खटक है। मुझे कोई हदीस सुनाइए कि अल्लाह इस खटक को मेरे दिल से निकाल दे। उन्होंने कहाः अगर तुम उहुद पर्वत के बराबर भी सोना खर्च कर दो तो अल्लाह उसे ग्रहण नहीं करेगा, जब तक तक़दीर पर ईमान न रखो और इस बात पर विश्वास न रखो कि जो चीज़ तुम्हें मिलने वाली है, वह तुम्हारे हाथ से निकल नहीं सकती और जो तुम्हें मिलने वाली नहीं है, वह तुम्हारे हाथ लग नहीं सकती। अगर तुम इसके सिवा किसी और आस्था पर मरोगे तो जहन्नम में प्रवेश करने वालों में शामिल हो जाओगे। वह कहते हैंः मैं इसके बाद अब्दुल्लाह बिन मसऊद, हुज़ैफ़ा बिन यमान और ज़ैद बिन साबित के पास गया तो हर एक ने मुझे अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हवाले से इस तरह की हदीस सुनाई।
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अब्दुल्लाह बिन फैरोज़ दैलमी -उनपर अल्लाह की कृपा हो- कहते हैं कि उनके दिल में तक़दीर के संबंध में कुछ आशंकाएँ पैदा हुईं, तो उन्हें भय हुआ कि कहीं मामला इसके इनकार तक न पहुँच जाए, अतः अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के ज्ञानी सहाबा -रज़ियल्लाहु अनहुम- के पास जाकर इस संदेह के निवारण के बारे में पूछा। वैसे, ईमान वालों का यही तरीका होना चाहिए कि जहाँ कोई संदेह पैदा हो, जानकार लोगों से संपर्क करें। यही अल्लाह का आदेश भी हैः "فاسألوا أهل الذكر إن كنتم لا تعلمون" (अगर तुम नहीं जानते, तो जानने वालों से पूछ लिया करो) तब उन सभी सहाबा ने उन्हें बताया कि अल्लाह के निर्णय तथा तक़दीर पर ईमान लाना अवश्यंभावी है। तक़दीर पर ईमान न रखने वाला बड़ी से बड़ी वस्तु भी खर्च कर दे, तो ग्रहण नहीं की जाएगी तथा तक़दीर पर ईमान रखे बिना मरने वाला जहन्नमी है।