“ऐ अंसारियो!” उन्होंने उत्तर दियाः हम उपस्थित हैं ऐ अल्लाह के रसूल! आपने कहाः “तुम लोग कहते हो कि इस व्यक्ति पर अपने…

“ऐ अंसारियो!” उन्होंने उत्तर दियाः हम उपस्थित हैं ऐ अल्लाह के रसूल! आपने कहाः “तुम लोग कहते हो कि इस व्यक्ति पर अपने वतन का प्रेम हावी हो गया है?” उन्होंने उत्तर दियाः हाँ हमने ऐसा कहा है। आपने कहाः “कतई नहीं! मैं अल्लाह का बंदा तथा उसका रसूल हूँ। मैंने अल्लाह की ओर तथा तुम्हारी ओर हिजरत की है। अब हमारा जीना भी तुम्हारे साथ है और हमारा मरना भी तुम्हारे साथ है।“

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णित है, वह कहते हैं कि रमज़ान में मुआविया (रज़ियल्लाहु अन्हु) के पास कई प्रतिनिधि मंडल आए। हममें से कुछ लोग दूसरे लोगों के लिए भोजन तैयार करते थे। चुनांचे अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अंहु) अकसर हमें अपने आवास पर बुलाते थे। एक दिन मैंने सोचा कि क्यों न मैं खाना तैयार करूँ और लोगों को अपने आवास पर बुलाऊँ? अतः, मैंने भोजन तैयार करने का आदेश दिया और शाम को अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अंहु) से मिलकर कहा कि आज रात मेरे यहाँ दावत है। उन्होंने कहाः तुमने तो मुझपर बाज़ी मार ली। मैंने कहाः अवश्य! फिर मैंने सभी लोगों को दावत दी। (जब सब लोग एकत्र हुए, तो) अबू हुरैरा ने कहाः ऐ अंसारियो! क्या मैं तुम्हें तुम लोगों से संबंधित एक हदीस न सुनाऊँ? फिर उन्होंने मक्का विजय का उल्लेख करते हुए कहाः अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) चल पड़े, यहाँ तक कि मक्का पहुँचे, तो ज़ुबैर को सेना के एक भाग, ख़ालिद को उसके दूसरे भाग पर तथा अबू उबैदा को बिना कवच वाले सिपाहियों पर नियुक्त किया। वे घाटी के अंदर से आगे बढ़ने लगे। ख़ुद अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) एक छोटे-से दस्ते में थे। अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अंहु) कहते हैं कि आपने नज़र दौड़ाई, तो मुझे देखा। फिर फ़रमायाः अबू हुरैरा? मैंने कहाः उपस्थित हूँ ऐ अल्लाह के रसूल! फ़रमायाः मेरे पास केवल मेरे अंसार ही आएँ! (एक रिवायत में है कि आपने कहाः मेरे लिए अंसार को पुकारो।) वह कहते हैंः फिर वे आपके पास इकट्ठे हो गए। उधर, क़ुरैश ने भी विभिन्न क़बीले के लोगों तथा अपने अनुयायियों को जमा कर लिया और कहा कि हम इनको आगे करते हैं। यदि इन्हें कुछ मिला, तो हम भी (उसे बाँटने के लिए) इनके साथ होंगे और यदि इनपर कोई आफ़त आई, तो हमसे जो कुछ माँगा जाएगा, हम दे देंगे। इधर, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "तुम क़रैश की जमातों तथा अनुयायियों को देखते हो।" फिर आपने एक हाथ को दूसरे पर मारकर उनके क़त्ल का इशारा करते हुए फ़रमायाः “तुम मुझसे सफ़ा (पहाड़ी) पर मिलो।“ अबू हुरैरा कहते हैंः फिर हम चल पड़े। हममें से जिसने जिसका वध करना चाहा उसका वध कर दिया। उनमें से कोई हमारा मुक़ाबला न कर सका। वह कहते हैं कि यह देख अबू सुफ़यान आए और कहने लगेः ऐ अल्लाह के रसूल! क़ुरैश तबाह व बरबाद हो गया। आज के बाद क़रैश नहीं रहेगा। यह सुन आपने कहाः “जो अबू सुफ़यान के घर में शरण ले ले, उसको अमान है।“ यह देख अंसार ने एक-दूसरे से कहाः इस व्यक्ति पर वतन की मुहब्बत हावी हो गई तथा यह अपने वंश के साथ सहानुभूति का शिकार हो गया। अबू हुरैरा कहते हैंः इसी बीच आपपर वह्य उतरने लगी। आपपर जब वह्य उतरती, तो हम समझ जाते थे। जब वह्य उतरने लगती, तो उसके बंद होने तक कोई अपने अंदर आपकी ओर देखने का सामर्थ्य नहीं पाता। जब वह्य समाप्त हुई, तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः “ऐ अंसारियो!” उन्होंने उत्तर दियाः हम उपस्थित हैं ऐ अल्लाह के रसूल! आपने कहाः “तुम लोग कहते हो कि इस व्यक्ति पर अपने वतन का प्रेम हावी हो गया है?” उन्होंने उत्तर दियाः हाँ हमने ऐसा कहा है। आपने कहाः “कतई नहीं! मैं अल्लाह का बंदा तथा उसका रसूल हूँ। मैंने अल्लाह की ओर तथा तुम्हारी ओर हिजरत की है। अब हमारा जीना भी तुम्हारे साथ है और हमारा मरना भी तुम्हारे साथ है।“ यह सुन वे आपकी ओर रोते हुए बढ़े और कहने लगेः हमने जो भी कहा था, वह केवल अल्लाह और उसके रसूल की लालसा में कहा था। इसपर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः “अल्लाह और उसके रसूल तुम्हें सच्चा मानते हैं तथा तुम्हारी क्षमायाचना स्वीकार करते हैं।“ अबू हुरैरा कहते हैंः इसके बाद लोग अबू सुफ़यान के घर की ओर आने लगे तथा लोगों ने अपने घरों के दरवाज़े बंद कर लिए। वह कहते हैंः अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) आगे बढ़ते रहे, यहाँ तक कि हजर-ए-असवद के पास आए, उसको चूमा, फिर काबा का तवाफ़ किया। अबू हुरैरा कहते हैंः फिर आप एक बुत के पास आए, जो काबा के पास रखा था और जिसकी लोग उपासना करते थे। उनका कहना है कि उस समय रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हाथ में एक कमान थी और आप उस कमान का एक किनारा पकड़े हुए थे। जब आप मूर्ति के पास आए, तो उसकी आँख में चोट करने लगे और यह आयत पढ़ने लगेः {جاء الحقُّ وزَهَقَ الباطلُ} (सत्य आ गया और असत्य मिट गया) [सूरा अल-इसराः 81]। जब तवाफ़ पूरा कर चुके, तो सफ़ा की तरफ़ आए और उसपर चढ़ गए, यहाँ तक कि काबा की ओर देखा और दोनों हाथों को उठाकर अल्लाह की प्रशंसा करने लगे तथा जो चाहा वह माँगने लगे।

[सह़ीह़] [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

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आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के द्वारा लड़े गए युद्ध एवं सैन्य कारर्वाइयाँ