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1- कल मैं झंडा एक ऐसे आदमी को दूँगा, जिसे अल्लाह तथा उसके रसूल से प्रेम है तथा अल्लाह एवं उसके रसूल को भी उससे प्रेम है। अल्लाह उसके हाथों विजय प्रदान करेगा।
2- जब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और आपके सहाबा मक्का आए, तो बहुदेववादियों ने कहाः तुम्हारे यहाँ ऐसे लोग आ रहे हैं, जिन्हें यसरिब के बुखार ने दुर्बल बना दिया है! यह सुनकर अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने सहाबियों को आदेश दिया कि शुरू के तीन चक्करों में दुलकी चाल से चलें, किंतु काबा के यमनी रुक्न और हजर-ए- असवद वाले रुक्न के बीच साधारण चाल से चलें
3- उहुद के दिन एक आदमी ने नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से कहाः आप क्या कहते हैं कि अगर मैं शहीद हो गया, तो कहाँ रहूँगा? आपने कहाः "जन्नत में।" यह सुनकर उसने वह खजूरें फेंक दीं, जो उसके हाथ में थीं और लड़ने लगा, यहाँ तक कि शहीद हो गया।
4- इसने कार्य थोड़ा किया और प्रतिफल बड़ा प्रदान किया गया।
5- अल्लाह मूसा पर दया करे, उन्हें इससे भी अधिक कष्ट दिया गया, परन्तु सब्र से काम लिया
6- "वह आजीविका थी, जिसे अल्लाह ने तुम लोगों के लिए निकाला था। क्या तुम्हारे पास उसका कुछ मांस है कि हमें भी खिला सको?" हमने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को उसका कुछ मांस भेजा और आपने उस से खाया।
7- बद्र के दिन अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाह अलैहि व सल्लम) ने मुश्रिकों की ओर देखा, जिनकी संख्या एक हज़ार थी, जबकि आपके साथी केवल तीन सौ उन्नीस
8- अली बिन अबू तालिब (रज़ियल्लाहु अंहु) का यह फ़रमान कि मैं पहला व्यक्ति हूँ, जो अत्यंत कृपाशील अल्लाह के सामने झगड़ने के लिए क़यामत के दिन अपने घुटनों के बल बैठेगा।
9- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने नज्द की ओर एक सैन्यदल भेजा। उसमें अब्दुल्लाह बिन उमर भी शामिल थे।
10- मुझे उहुद युद्ध के अवसर पर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सामने लाया गया। उस समय मेरी आयु चौदह साल थी। अतः, आपने मुझे अनुमति नहीं दी।
11- ऐ अल्लाह के रसूल, ऐसा लग रहा था कि मैं अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ा सकूँगा, यहाँ तक सूरज डूबने लगा, तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः अल्लाह की क़समः मैंने तो अभी तक अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी है। वर्णनकर्ता कहते हैं कि फिर हम लोग बुतहान की ओर निकले, आपने नमाज़ के वज़ू किया, हमने भी वज़ू किया, फिर सूरज डूबने के बाद अस्र की नमाज़ पढ़ी और उसके बाद मग़रिब की नमाज़ पढ़ी।
12- हम अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ एक युद्ध में निकले। हम छह लोगों को सामूहिक रूप से एक ऊँट दिया गया था, जिसपर हम बारी-बारी सवार होते थे। पैदल चलने से हमारे पाँव ज़ख़्मी हो गए थे। स्वयं मेरे पाँव भी ज़ख़्मी हो गए थे
13- ऐ साद बिन मुआज़! काबा के रब की क़सम, मुझे उहुद पर्वत के निकट से जन्नत की सुगंध आ रही है।
14- अगर मैं अपने इन खुजूरों को खाने तक जीवित रहा तो यह बड़ा लंबा जीवन होगा। अतः, अपने पास मौजूद खुजूरों को फेंक दिया और मुश्रिकों से लड़ने लगे, यहाँ तक कि मारे गए।
15- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मक्का विजय के वर्ष मक्का में दाखिल हुए तो आपके सिर पर लोहे की टोपी थी। जब उसे उतारा तो एक व्यक्ति ने आपके पास आकर कहा कि ख़तल का बेटा काबा के पर्दों से चिमटा हुआ है। सो, आपने फ़रमायाः उसका वध कर दो।
16- तबूक युद्ध के समय जब लोगों को अकाल का सामना करना पड़ा, तो वे कहने लगेः ऐ अल्लाह के रसूल, यदि आप अनुमति दें, तो हम अपने ऊँटों को ज़बह करके उनका मांस खाएँ और उनकी चरबी को तेल के रूप में इस्तेमाल करें।
17- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने दस लोगों का के एक सैन्य दल जसूसी के लिए भेजा और आसिम बिन साबित अंसारी (रज़ियल्लाहु अंहु) को उसका प्रमुख बनाया।
18- हम लोग खंदक़ के दिन गड्ढा खोद रहे थे कि एक मज़बूत चट्टान निकल आई। सारे लोग नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आए और कहने लगे कि खंदक़ में एक चट्टान सामने आ गई है। आपने फ़रमाया : "मैं उतरता हूँ।"
19- हम रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की अगवानी के लिए बच्चों के साथ सनिय्यतुल वदा तक गए।
20- फ़रिश्ते अभी तक उनपर अपने परों से छाया किए हुए हैं।
21- मैं अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ हुनैन के दिन उपस्थित था। मैं और अबु सुफ़यान बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ रहे और आपसे अलग नहीं हुए।
22- अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब ख़नदक़ युद्ध से लौटे और हथियार उतारने के बाद स्नान कर लिया, तो जिबरील (अलैहिस्सलाम) आपके पास आए और बोले: आपने हथियार उतार दिया है? अल्लाह की क़सम! हमने अभी तक नहीं उतारा है! आप उनकी ओर चलें
23- ऐसा लगता है कि आज भी मैं बनी ग़नम की गली में वह उड़ती हुई धूल देख रहा हूँ, जो जिबरील (सलवातुल्लाहि अलैहि) के क़ाफ़िले से उठी थी, जब वह अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ बनू क़ुरैज़ा की ओर चले थे
24- “ऐ अंसारियो!” उन्होंने उत्तर दियाः हम उपस्थित हैं ऐ अल्लाह के रसूल! आपने कहाः “तुम लोग कहते हो कि इस व्यक्ति पर अपने वतन का प्रेम हावी हो गया है?” उन्होंने उत्तर दियाः हाँ हमने ऐसा कहा है। आपने कहाः “कतई नहीं! मैं अल्लाह का बंदा तथा उसका रसूल हूँ। मैंने अल्लाह की ओर तथा तुम्हारी ओर हिजरत की है। अब हमारा जीना भी तुम्हारे साथ है और हमारा मरना भी तुम्हारे साथ है।“
25- ख़ंदक़ के दिन साद (रज़ियल्लाहु अंहु) जख़्मी हो गए थे। उनको क़ुरैश की बनू मईस बिन आमिर बिन लुऐ शाखा के हिब्बान बिन क़ैस नामी एक व्यक्ति ने, जिसे हिब्बान बिन अरिक़ा कहा जाता था, उनके बाज़ू की रग में तीर मार दिया था। चुनांचे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उनके लिए मस्जिद में एक ख़ेम लगा दिया था, ताकि निकट से उनकी देखभाल कर सकें।
26- हुनैन में हमने अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के संग ग़ज़वा (युद्ध) किया, जब शत्रु से हमारी मुठभेड़ हुई तो मैं एक टीले पर चढ़ गया, शत्रुओं में से एक आदमी मेरे सामने आया, तो मैंने उसको तीर मारा किंतु वह मुझ से छुप गया, फिर मुझे पता नहीं उस का क्या हुआ।
27- हम अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ ख़ैबर युद्ध में शरीक हुए, जहाँ हमें बकरियाँ मिलीं, तो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उसका कुछ भाग हमारे बीच बाँट दिया और शेष को माल-ए-ग़नीमत में जमा कर दिया।