फ़लाँ नमाज़ को फ़लाँ समय में पढ़ो और फ़लाँ नमाज़ को फ़लाँ समय में पढ़ो,जब नमाज़ का समय हो जाए तो तुम में से एक…

फ़लाँ नमाज़ को फ़लाँ समय में पढ़ो और फ़लाँ नमाज़ को फ़लाँ समय में पढ़ो,जब नमाज़ का समय हो जाए तो तुम में से एक व्यक्ति अज़ान दे तथा तुम में से जो क़ुरआन का सबसे ज़्यादा याद रखता हो वह इमामत करे।

अय्यूब से वर्णित है, वह अबू क़िलाबा से वर्णन करते हैं, वह अम्र बिन सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं, अय्यूब कहते हैं कि मुझ से अबू क़िलाबा ने कहा : क्यों नहीं तुम उनसे भेंट कर के उनसे पूछते हो -अर्थात तुम अम्र बिन सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछो-, वह कहते हैं : मैंने उनसे भेंट किया तथा पूछा तो उन्होंने फ़रमाया : हम एक चश्मे पर रहते थे, जो लोगों के लिए आम रास्ता था । हमारी तरफ से जो मुसाफिर सवार गुज़रते, हम उनसे पूछते रहते कि अब लोगों का क्या हाल है ? और उस आदमी की क्या हालत है ? वे लोग जवाब देते : वह कहता है कि अल्लाह ने उसे रसूल बनाकर भेजा है और अल्लाह उसकी तरफ वह्य उतारता है । या यूं कहा कि अल्लाह ने उस पर यह वह्य भेजी है । अम्र बिन सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैं वो कलाम ख़ूब याद कर लिया करता । गोया कोई उसे मेरे सीने में जमा देता है । और अरब वाले मुसलमान होने के लिए फतह मक्का के मुन्तज़िर थे । और कहते थे कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और उसकी क़ौम को छोड़ दो । अगर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उन पर गालिब आ गये तो वो नबी बरहक़ हैं । फिर जब मक्का फतह हुआ तो हर एक क़ौम ने चाहा कि वो पहले मुसलमान हो जाये और मेरे पिता ने मुसलमान होने में अपनी क़ौम से भी जल्दी की । जब मेरे पिता मुसलमान होकर आये तो उन्होंने अपनी क़ौम से कहा : अल्लाह की क़सम ! मैं नबी बरहक़ से मुलाक़ात करके तुम्हारे पास आ रहा हूँ । उन्होंने फ़रमाया है : “फ़लां नमाज़ फ़लां वक़्त पढ़ो और फ़लां नमाज़ फ़लां वक़्त और जब नमाज़ का वक़्त आ जाये तो तुम में से एक आदमी अज़ान दे और जिसको ज़्यादा क़ुरआन याद हो, वो नमाज़ पढ़ाये।” उन्होंने इस पर ग़ौर किया तो मुझसे ज़्यादा किसी को क़ुरआन पढ़ने वाला न पाया । क्योंकि मैं मुसाफिर सवारों से सुन सुन कर बहुत याद कर चुका था । लिहाज़ा सबने मुझे इमाम बना लिया । हालांकि मैं उस वक़्त छः सात बरस का था । स्थिती यह थी कि उस वक़्त मेरे तन पर सिर्फ एक चादर थी, वो भी जब मैं सज्दा करता तो सिकुड़ जाती। क़बीले की एक औरत ने यह मंज़र देखकर कहा : तुम अपने क़ारी का पिछला हिस्सा हम से क्यों नहीं छिपाते । आख़िरकार उन्होंने एक कपड़ा ख़रीद कर मेरा कुर्ता बनाया, मैं जितना उस कुर्ते से ख़ुश हुआ, उतना किसी चीज़ से कभी ख़ुश नहीं हुआ ।

[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।]

التصنيفات

इमाम तथा उसके पीछे नमाज़ पढ़ने वाले के अहकाम, विद्यावान तथा विद्यार्थी के आदाब