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मैं टेक लगाकर नहीं खाता।
मैं टेक लगाकर नहीं खाता।
अबू जुहैफा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है, वह कहते हैं कि मैं नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास था कि आपने एक व्यक्ति से, जो आपके निकट था, फ़रमायाः "मैं टेक लगाकर नहीं खाता।"
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।]
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इस हदीस में अबू जुहैफ़ा वह्ब बिन अब्दुल्लाह सुवाई -रज़ियल्लाहु अनहु- कहते हैं कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का तरीक़ा यह नहीं था कि टेक लगाकर खाना खाएँ। मसलन अपने एक पहलू को तकिया आदि पर रखकर उसके सहारे बैठें या एक हाथ को ज़मीन पर रखकर उसका सहारा लें। आप इस तरह बैठने से परहेज़ करते थे। क्योंकि इस तरह बैठना अधिक भोजन करने का तक़ाज़ा करता है, जो कि भारीपन एवं सुस्ती लाता है और इससे कई शारीरिक नुक़सान भी होते हैं। क्योंकि जब आदमी टेक लगाए हुए होता है, तो उसके खाने की नली सीधी रहने की बजाय एक ओर झुकी हुई रहती है और अपनी प्राकृतिक अवस्था में नहीं होती, जिससे नुक़सान होने की संभावना रहती है। इसी तरह खाना खाते समय टेक लगाकर बैठना इन्सान के अभिमान को प्रदर्शित करता है और विनम्रता के विपरीत है।التصنيفات
खाने-पीने के आदाब