जाहिलियत काल के लोग साल दो साल तक के लिए 'ईला' (अपनी पत्नी के पास न जाने की क़सम खाना) किया करते थे। फिर अल्लाह ने 'ईला'…

जाहिलियत काल के लोग साल दो साल तक के लिए 'ईला' (अपनी पत्नी के पास न जाने की क़सम खाना) किया करते थे। फिर अल्लाह ने 'ईला' के समय का निर्धारण कर दिया। अतः, जिसने चार महीने से कम समय की ईला की, उसकी ईला, ईला नहीं है।

अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अंहुमा) का वर्णन है, उन्होंने कहा किः जाहिलियत काल के लोग साल दो साल तक के लिए 'ईला' (अपनी पत्नी के पास न जाने की क़सम खाना) किया करते थे। फिर अल्लाह ने 'ईला' के समय का निर्धारण कर दिया। अतः, जिसने चार महीने से कम समय की ईला की, उसकी ईला, ईला नहीं है।

[मुझे अल्लामा अलबानी का कोई हुक्म नहीं मिला।] [इसे बैहक़ी ने रिवायत किया है। - इसे तबरानी ने रिवायत किया है। - इसे सई़द बिन मन्सूर ने रिवायत किया है।]

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