जो स्त्री अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखती है, उसके लिए उचित नहीं है कि किसी मृत व्यक्ति पर तीन दिन से अधिक सोग…

जो स्त्री अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखती है, उसके लिए उचित नहीं है कि किसी मृत व्यक्ति पर तीन दिन से अधिक सोग मनाए, सिवाए पति के; उसपर चार माह दस दिन सोग मना सकती है।

ज़ैनब बिंत अबू सलमा (रज़ियल्लाहु अनहा) कहती हैं कि उम्मे हबीबा (रज़ियल्लाहु अनहा) के एक क़रीबी रिश्तेदार की मृत्यु हो गई तो उन्होंने पीले रंग की ख़ुशबू मँगवाकर अपने दोनों हाथों पर लगा लिया और कहाः मैं ऐसा इसलिए कर रही हूँ, क्योंकि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फ़रमाते हुए सुना हैः जो स्त्री अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखती है, उसके लिए उचित नहीं है कि किसी मृत व्यक्ति पर तीन दिन से अधिक सोग मनाए, सिवाए पति के; उसपर चार माह दस दिन सोग मना सकती है।

[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

الشرح

उम्मे हबीबा (रज़ियल्लाहु अंहा) के पिता की मृत्यु हुई और उन्होंने सुन रखा था कि पति के सिवा किसी की मौत पर तीन दिन से अधिक सोग मनाना जायज़ नहीं है, इसलिए उन्होंने इसका पालन करके दिखाने का इरादा किया। चुनांचे ज़रदी मिली हुइ खुशबू मँगवाकर हाथों से मल लिया और इसका कारण यह बताया कि उऩ्होंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फ़रमाते हुए सुना हैः जो स्त्री अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान रखती हो, उसके लिए हलाल नहीं है कि किसी मृत पर तीन दिन से अधिक सोग मनाए, सिवाय पति के कि उसपर चार माह दस दिन सोग मनाएगी।

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