कभी तो मेरे पास वह्य घंटी के बजने की तरह आती है और यह हालत मुझपर सबसे कठिन गुज़रती है। जब यह हालत छठती है, तो मुझे…

कभी तो मेरे पास वह्य घंटी के बजने की तरह आती है और यह हालत मुझपर सबसे कठिन गुज़रती है। जब यह हालत छठती है, तो मुझे फ़रिश्ते की कही हुई बात याद हो जाती है। जबकि कभी फ़रिश्ता इनसान के रूप में मेरे पास आकर मुझसे बात करता है और जो कुछ वह कहता है, उसे मैं याद कर लेता हूँ।

आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से रिवायत है कि हारिस बिन हिशाम (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! आपके पास वह्य कैसे आती है? रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : “कभी तो मेरे पास वह्य घंटी के बजने की तरह आती है और यह हालत मुझपर सबसे कठिन गुज़रती है। जब यह हालत छठती है, तो मुझे फ़रिश्ते की कही हुई बात याद हो जाती है। जबकि कभी फ़रिश्ता इनसान के रूप में मेरे पास आकर मुझसे बात करता है और जो कुछ वह कहता है, उसे मैं याद कर लेता हूँ।” आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) का बयान है कि मैंने सख़्त सर्दी के दिनों में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को देखा कि आपपर वह्य उतरती और जब उसका सिलसिला बंद होता, तो आपकी पेशानी से पसीना टपक रहा होता।

[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

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क़ुरआन का अवतरण तथा संकलन