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1- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर सर्दी की सुबह को भी वह्य उतरती, तो आपके ललाट पर पसीना बह पड़ता।
2- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक सूरा ख़त्म होकर दूसरा सूरा शुरू होने की बात जान नहीं पाते, जब तक आपपर "बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम" न उतरती।
3- कभी तो मेरे पास वह्य घंटी के बजने की तरह आती है और यह हालत मुझपर सबसे कठिन गुज़रती है। जब यह हालत छठती है, तो मुझे फ़रिश्ते की कही हुई बात याद हो जाती है। जबकि कभी फ़रिश्ता इनसान के रूप में मेरे पास आकर मुझसे बात करता है और जो कुछ वह कहता है, उसे मैं याद कर लेता हूँ।
4- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर जब वह्य उतरती, तो उसके कारण आप बेचैन हो जाते और आपके चेहरे का रंग बदल जाता।
5- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) क़ुरआन उतरते समय कठिनाई का अनुभव करते और अपने होंठों को हिलाते थे।
6- क़ुरआन की जो आयतें उतारी गई थीं, उनमें से एक आयत थीः "दस बार दूध पीने से, जो मालूम हों, हुरमत साबित होती है।" फिर यह आयत मनसूख़ (निरस्त) हो गई और पाँच बार दूध पीने की बात कही गई, जो मालूम हों। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की जब मृत्यु हुई, तो ये शब्द क़ुरआन में मौजूद थे और पढ़े जा रहे थे।
7- प्रभुत्वशाली एवं महान अल्लाह ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की मृत्यु से पहले लगातार वह्य उतारी, यहाँ तक कि जब आपने अंतिम साँस ली तो वह्य (प्रकाशना) उतरने का सिलसिला चरम पर था।
8- अगर वह मेरे निकट आता, तो फ़रिश्ते उसकी बोटी- बोटी उचक लेते
9- ज़ैद बिन साबित अंसारी (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं, जो वह्य लिखने वालों में शामिल थे: जब यमामा युद्ध में बहुत- से सहाबा शहीद हो गए, तो अबू बक्र ने मुझे बुला भेजा, (मैं पहुँचा तो) उमर उनके पास मौजूद थे (रज़ियल्लाहु अनहुमा)
10- हुज़ैफ़ा बिन यमान (रज़ियल्लाहु अनहु), उसमान बिन अफ़्फ़ान (रज़ियल्लाहु अनहु) के पास उस समय पहुँचे, जब वह आर्मीनिया और अज़रबाइजान को जीतने के लिए सीरिया तथा इराक़ वालों को तैयारी कराने में जुटे थे, हुज़ैफ़ा (रज़ियल्लाहु अनहु) को क़ुरआन पढ़ने के संबंध में लोगों के मतभेद ने घबराहट में डाल रखा था