मैं वह कुछ देखता हूँ, जो तुम नहीं देखते। आकाश चरचराता है और उसका चरचराना उचित भी है। उसमें चार उंगली की भी कोई ऐसी…

मैं वह कुछ देखता हूँ, जो तुम नहीं देखते। आकाश चरचराता है और उसका चरचराना उचित भी है। उसमें चार उंगली की भी कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ कोई फ़रिश्ता पेशानी रखकर अल्लाह तआना को सजदा न कर रहा हो।

अबूज़र (रज़ियल्लाहु अंहु) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हुए कहते हैंः "मैं वह कुछ देखता हूँ, जो तुम नहीं देखते। आकाश चरचराता है और उसका चरचराना उचित भी है। उसमें चार उंगली की भी कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ कोई फ़रिश्ता पेशानी रखकर अल्लाह तआना को सजदा न कर रहा हो। अल्लाह की क़सम, अगर तुम वह कुछ जान लो, जो मैं जानता हूँ, तो तुम हँसो कम और रोओ अधिक तथा बिसतरों पर स्त्रियों के साथ आनंद न ले सको एवं अल्लाह से फ़रियाद करते हुए रास्तों की ओर निकल जाओ।"

[ह़सन लि-ग़ैरिही (अन्य सनदों अथवा रिवायतों के साथ मिलकर हसन)] [इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है ।]

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फ़रिश्तों पर ईमान, फरिश्ते