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सब्र तो मुसीबत के शुरू में करना होता है।
सब्र तो मुसीबत के शुरू में करना होता है।
अनस बिन मालिक (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है, वह कहते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) एक स्त्री के पास से गु़जरे, जो क़ब्र के पास बैठकर रो रही थी। आपने फरमायाः "अल्लाह का तक़वा अख़्तियार कर तथा सब्र कर।" उसने ऊत्तर दियाः आप मुझसे दूर रहें, मुझ जैसी मुसीबत का सामना न तो आपने किया है और न आप उसे जानते हैं! उसके बाद उसको बताया गया कि यह नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं, तो वह नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के द्वार पर आई और वहाँ उसे दरबान नहीं मिले, (जो उसे आपके पास जाने से रोकते। अतः, वह आपके पास आई और) बोलीः मैं आपको पहचान नहीं पाई थी। आपने फरमायाः "सब्र तो मुसीबत के शुरू में करना होता है।"
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
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मृत्यु तथा उससे संबंधित अहकाम