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अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) यात्रा के दौरान जब चल रहे होते, तो जोहर और अस्र की नमाज़ों को एक साथ पढ़ते…
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) यात्रा के दौरान जब चल रहे होते, तो जोहर और अस्र की नमाज़ों को एक साथ पढ़ते तथा मग़रिब और इशा की नमाज़ों को एक साथ पढ़ते।
अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अंहुमा) का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) यात्रा के दौरान जब चल रहे होते, तो जोहर और अस्र की नमाज़ों को एक साथ पढ़ते तथा मग़रिब और इशा की नमाज़ों को एक साथ पढ़ते।
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।]
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हमारे नबी मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की शरीयत दूसरी आसमानी शरीयतों से इस मायने में भिन्न है कि इसमें उदारता एवं आसानी का ख़याल रखा गया है और बंदों की हर कठिनाई को या तो दूर किया गया है और कम करने का प्रयास किया गया है। इसका एक उदाहरण यह है कि शरीयत ने मुश्तरक समय वाली दो नमाज़ों को सफ़र में एक साथ पढ़ने की अनुमित दी है। असल तो यह है कि प्रत्येक नमाज़ को उसके समय पर ही पढ़ा जाए, किन्तु नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की आदत थी कि जब यात्रा में होते और लगातार चल रहे होते, तो ज़ोहर और अस्र को, ज़ोहर अथवा अस्र के समय में एक साथ पढ़ते और इसी प्रकार मग़रिब तथा इशा को मग़रबि अथवा इशा के समय में एक साथ पढ़ते थे। आप, आगे अथवा पीछे पढ़ने के मामले में अपनी तथा अपने साथियों की आसानी का ख़याल रखते थे। इस तरह, यात्रा दो नमाज़ों को, उनमें से किसी एक नमाज़ के समय में, एक साथ पढ़ने का उचित कारण है। क्योंकि, एक तो यह कि यात्रा में दोनों नमाज़ों का समय एक हो जाता है, साथ ही सफ़र कठिनाई का कारण हुआ करता है चाहे आदमी चल रहा हो या रुका हुआ हो और दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ने की छूट आसानी पैदा करने के लिए दी गई है।التصنيفات
उज़्र वाले लोगों की नमाज़