إعدادات العرض
मैंने अनस (रज़ियल्लाहु अंहु) से पूछाः क्या अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सहाबा में मुसाफ़हे…
मैंने अनस (रज़ियल्लाहु अंहु) से पूछाः क्या अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सहाबा में मुसाफ़हे (मुलाक़ात के समय हाथ मिलाने) का चलन था? तो फ़रमायाः हाँ!
अबू ख़त्ताब क़तादा कहते हैं कि मैंने अनस (रज़ियल्लाहु अंहु) से पूछाः क्या अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सहाबा में मुसाफ़हे (मुलाक़ात के समय हाथ मिलाने) का चलन था? तो फ़रमायाः हाँ!
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।]
الترجمة
العربية বাংলা Bosanski English Español فارسی Français Bahasa Indonesia Русский Tagalog Türkçe اردو 中文 සිංහල ئۇيغۇرچە Hausa Kurdî Portuguêsالشرح
"क्या अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के सहाबा में मुसाफ़हे का चलन था?" यानी जब वे मुलाक़ात के समय सलाम करते थे, तो क्या उसके बाद प्रेम में वृद्धि के लिए तथा सम्मानस्वरूप एक-दूसरे से मुसाफ़हा भी करते थे? याद रहे कि मुसाफ़हा दाहिने हाथ से होता है और जब दो व्यक्ति मुसाफ़हा करते हैं, तो अलग होने से पहले दोनों को क्षमा कर दिया जाता है। यह हदीस मुलाक़ात के समय मुसाफ़हा की फ़ज़ीलत बताती है। याद रहे कि मुसाफ़हा की फ़ज़ीलत उस समय है, जब इनसान एक-दूसरे से बात करने या फिर इस तरह के किसी और उद्देश्य से मिले। जहाँ तक बाज़ार में चलते हुए होने वाली मुलाक़ात की बात है, तो सहाबा उस समय मुसाफ़हा नहीं करते थे। यानी जब कोई बाज़ार में किसी के पास से गुज़रे, तो उसे सलाम कर देना ही काफ़ी है।