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अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) खड़े होकर दो ख़ुतबे देते थे और दोनों के बीच में बैठकर अंतर करते थे।
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) खड़े होकर दो ख़ुतबे देते थे और दोनों के बीच में बैठकर अंतर करते थे।
अब्दुल्लाह बिन उमर बिन ख़त्ताब (रज़ियल्लाहु अंहुमा) कहते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) दो ख़ुतबे देते थे और दोनों के बीच में बैठते थे। तथा जाबिर (रज़ियल्लाहु अंहु) की एक रिवायत में है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) खड़े होकर दो ख़ुतबे देते थे और दोनों के बीच में बैठकर अंतर करते थे।
[दोनों रिवायतों को मिलाकर सह़ीह़] [इसे बैहक़ी ने रिवायत किया है। - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
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जुमे के दिन एक बड़ा मजमा होता है, जिसमें पूरे शहर के लोग शामिल होते हैं। यही वजह है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम-, जिनका हर काम हिकमत से भरा होता था, उस दिन लोगों के समाने दो संबोधन रखते और उन्हें भलाई का रास्ता बताने तथा बुराई से रोकने का काम करते थे। दोनों ख़ुतबे आप मिंबर पर खड़े होकर दिया करते थे, ताकि लोगों को समझाने और सिखाने का कार्य अधिक अच्छे ढंग से हो सके। साथ ही खड़े होकर ख़ुतबा देने से इस्लाम की शान व शौकत और शक्ति भी झलकती है। जब पहला ख़ुतबा संपन्न हो जाता, तो क्षणिक देर आराम के लिए बैठ जाते और पहले खु़तबे को दूसरे से अलग कर देते। उसके बाद फिर खड़े होते और दूसरा खुतबा देते, ताकि न ख़ुतबा देने वाले को थकान महसूस हो और न सुनने वाले उकताएँ।التصنيفات
जुमे की नमाज़