आज़ाद किए हुए ग़ुलाम की मृत्यु के पश्चात, उसका उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में, उसके उत्तराधिकारी होने का अधिकार…

आज़ाद किए हुए ग़ुलाम की मृत्यु के पश्चात, उसका उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में, उसके उत्तराधिकारी होने का अधिकार उसे प्राप्त होगा, जिसने उसे आज़ाद किया है।

आइशा बिंत अबू बक्र (रज़ियल्लाहु अनहुमा) कहती हैंः बरीरा (रज़ियल्लाहु अनहा) के कारण अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ओर से तीन तरीके सामने आएः जब वह आज़ाद हो गईं तो आपने उन्हें अपने पति के साथ रहने या न रहने का अख़्तियार दिया। उन्हें कहीं से मांस भेजा गया। मांस की हंडी चूल्हे पर थी कि आप मेरे यहाँ आए और खाना माँगा। सामने रोटी और घर में मौजूद सालन रखा गया तो फ़रमायाः क्या मैंने चूल्हे पर मांस की हाँडी नहीं देखी है? सबने कहाः हाँ, ऐ अल्लाह के रसूल! लेकिन वह मांस तो बरीरा को सद़के में मिला है। इसीलिए हमने उसे आपको खिलाना गवारा नहीं किया। इसपर आपने फ़रमायाः वह उसके लिए सदक़ा है, लेकिन उसकी ओर से हमारे लिए भेंट है। तथा अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उन्हीं के बारे में फ़रमायाः आज़ाद किए हुए ग़ुलाम की मृत्यु के पश्चात, उसका उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में, उसका उत्तराधिकारी होने का अधिकार उसे प्राप्त होगा, जिसने उसे आज़ाद किया है।

[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

الشرح

आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) उस बरकत वाले सौदे को याद करते हुए, जो बरीरा (रज़ियल्लाहु अंहा) को उनसे क़रीब लाया था, अपनी इस मुक्त की हुई दासी की कुछ बरकतों को याद करती हैं। क्योंकि अल्लाह ने उनसे संबंधित चार ऐसे महत्वपूर्ण आदेश दिए हैं, जो आम आदेश के रूप में हमेशा के लिए बाक़ी रह गए। पहला आदेशः वह अपने दास पति मुग़ीस (रज़ियल्लाहु अंहु) के विवाह में थीं कि मुक्त हो गईं, जिसके बाद उन्हें अपने पहले पति के निकाह में रहने या उसे छोड़कर अलग हो जाने की अनुमति दे दी गई, क्योंकि अब वह आज़ाद थीं और उनका पति ग़ुलाम। इस तरह वह अपने पति के समकक्ष नहीं रह गई थीं, जबकि यहाँ समकक्षता का एतबार होगा। यही कारण है कि वह निकाह रद्द करके उनसे अलग हो गईं और अन्य स्त्रियों के लिए एकआदर्श के रूप में सामने आईं। दूसरा आदेशः वह आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) के घर में थीं और उनको मांस दान किया गया। मांस हंडी में पक ही रहा था कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) के यहाँ आए और खाना माँगा। आपको रोटी और घर में मौजूद सालन दिया गया और बरीरा (रज़ियल्लाहु अंहा) को सदक़े में मिलने वाला मांस नहीं दिया गया, क्योंकि सब को पता था कि आप सदक़ा नहीं खाते। लेकिन आपने कहाः क्या मैंने चूल्हे पर मांस की हंडी नहीं देखी है? घर के लोगों ने कहाः हाँ, देखा तो है, लेकिन लेकिन वह बरीरा को सदक़े में मिला है और हम नहीं चाहते कि आप उसे खाएँ। इसपर आपने कहाः वह उसे सदक़े में मिला है, लेकिन उसकी ओर से हमारे लिए उपहार है। तीसरा आदेशः उनके मालिकों ने जब उनको आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) से बेचना चाहा, तो यह शर्त लगा दी कि 'वला' उनको प्राप्त होगा, ताकि जब मुक्त होने के बाद वह अपनी निसबत उनकी ओर करें, तो उन्हें गौरव का अनुभव हो तथा हो सकता है कि उन्हें मीरास और सहायता आदी भौतिक लाभ भी मिलें। ऐसे में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः " 'वला' उसके लिए है, जिसने आज़ाद किया हो।" बेचने वाले या किसी और के लिए नहीं। 'वला' वह संबंध है, जो मुक्ति प्राप्त करने के बाद, किसी मुक्त दास और उसके मुक्त करने वाले मालिक के बीच में हो। चुनांचे मुक्ति प्राप्त करने वाला दास यदि मर जाए और उसका कोई उत्तराधिकारी न हो या फिर सभी निर्धारित भाग वालों के अपना-अपना भाग ले लेने के बाद कुछ बच जाए, तो वह उसे मिलेगा, जिसने उसे आज़ाद किया हो।

التصنيفات

दास मुक्त करना