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1- अगर तुमने उसे अपने मामा लोगों को दे दिया होता, तो अधिक सवाब मिलता
2- जो किसी मुस्लिम दास को मुक्त करता है, अल्लाह उसके एक-एक अंग के बदले में इसके एक-एक अंग को जहन्नम से मुक्त कर देता है, यहाँ कि उसकी शर्मगाह के बदले इसकी शर्मगाह को मुक्त कर देता है।
3- जो शख़्स किसी मुसलमान ग़ुलाम को आज़ाद करेगा, तो अल्लाह आज़ाद किए गए ग़ुलाम के शरीर के हर अंग के बदले उसके शरीर का एक अंग दोज़ख़ से आज़ाद करेगा।
4- एक अंसारी ने अपने दास से कह दिया कि तुम मेरे मरने के बाद आज़ाद हो।
5- जिसने किसी गुलाम में अपना भाग मुक्त किया तथा उसके पास इतना धन हो, जो उसकी पूरी क़ीमत को पहुँचता हो, तो गुलाम की न्यायसंगत क़ीमत लगाई जाए और अन्य साझेदारों को उसकी ओर से उनके हिस्सों की क़ीमत अदा कर दिए जाए, तभी उसकी ओर से पूरा गुलाम मुक्त होगा, अन्यथा उसकी ओर से जितना मुक्त हुआ, सो हुआ
6- जिसने किसी दास में अपना भाग मुक्त कर दिया, उसे अपने धन से पूरा दास मुक्त करना होगा। परन्तु, यदि उसके पास पर्याप्त धन न हो, तो उस दास की न्यायसंगत क़ीमत लगाई जाएगी और उस दास से प्रयास करने को कहा जाएगा। हाँ, मगर उसे तंग नहीं किया जाएगा
7- तीन आदमी ऐसे हैं, जिनको दोगुना सवाब मिलेगा। एक वह अह्ले किताब जो अपने नबी पर ईमान लाया और फिर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाया, दूसरा वह ग़ुलाम जो अल्लाह का और अपने मालिकों का हक़ अदा करता रहा और तीसरा वह व्यक्ति, जिसके पास कोई दासी हो, फिर वह उसे शिष्टाचार सिखाए और अच्छी तरह सिखाए तथा शिक्षा दे और अच्छी से अच्छी शिक्षा दे और आज़ाद करके शादी कर ले, तो उसके लिए भी दोगुना सवाब है।
8- आज़ाद किए हुए ग़ुलाम की मृत्यु के पश्चात, उसका उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में, उसके उत्तराधिकारी होने का अधिकार उसे प्राप्त होगा, जिसने उसे आज़ाद किया है।
9- कर्तव्यनिष्ठ दास के लिए दोगुना प्रतिफल है।
10- मैं बनी मुक़र्रिन का सातवाँ व्यक्ति था। हमारी एक दासी थी, जिसे सबसे छोटे भाई ने एक थप्पड़ मार दिया था, तो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हमें उसे मुक्त करने का आदेश दिया
11- यह जो नमाज़ है, इसमें लोगों की आम बात-चीत सही नहीं है। इसमें तो बस तसबीह, तकबीर और क़ुरआन की तिलावत होती है।
12- 'वला' (अर्थात वारिस बनने का अधिकार) उसके लिए है, जिसने मुक्त करने का उपकार किया हो।
13- जो किसी महरम रिश्तेदार (दास) का मालिक हो, तो वह (दास उसके आज़ाद किए बिना) आज़ाद है।
14- सफ़ीना -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि मैं उम्मे सलमा -रज़ियल्लाहु अन्हा- का ग़ुलाम था, तो उन्होंने कहा : मैं तुझको आज़ाद करती हूँ इस शर्त पर कि तू जब तक जीवित रहेगा अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की सेवा करता रहेगा।
15- मुकातब (वह ग़ुलाम जो अपने मालिक से यह अनुबंध कर ले कि कुछ पैसा लेकर वह उसको आज़ाद कर देगा) उस समय तक ग़ुलाम है जब तक उसके ऊपर उस अनुबंध का एक दिरहम भी बाकी है।