जो क़ुरआन को मधुर आवाज़ से न पढ़े, वह हम में से नहीं है

जो क़ुरआन को मधुर आवाज़ से न पढ़े, वह हम में से नहीं है

अबू लुबाबा बशीर बिन अब्दुल मुनज़िर (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः जो क़ुरआन को मधुर आवाज़ से न पढ़े, वह हम में से नहीं है।

[सह़ीह़] [इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।]

الشرح

अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस हदीस में मधुर आवाज़ में क़ुरआन पढ़ने की प्रेरणा दी है। दरअसल हदीस में आए हुए शब्द "مَن لَم يَتَغنَّ بِالقُرآنِ" के दो अर्थ हैं : एक, जो मधुर आवाज़ में क़ुरआन न पढ़े और दुसरा, जो क़ुरआन से संतुष्ट होकर अन्य स्थानों में मार्गदर्शन ढूँढना न छोड़े, वह हम में से नहीं है। दरअसल यह बड़ी सख़्त चेतावनी है, जो इस बात को प्रमाणित करती है कि यह एक बड़ा गुनाह है, जो चेतावनी एवं धमकी का हक़दार है। इस बात में कोई संदेह है भी नहीं कि जो क़ुरआन को छोड़ कहीं और मार्गदर्शन ढूँढे, उसे अल्लाह गुमराह कर देगा। हम इस तरह के पापों से अल्लाह की शरण माँगते हैं। इस हदीस से मालूम हुआ कि इन्सान को मधुर आवाज़ में क़ुरआन पढ़ना चाहिए और उसी से संतुष्ट रहना चाहिए।

التصنيفات

क़ुरआन पर ध्यान केंद्रित करने की फ़ज़ीलत, पवित्र क़ुरआन की फ़ज़ीलतें