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तुम (अपने शासकों की बात) सुनो और अनुसरण करो, कठिन परिस्थिति में भी तथा आसान परिस्थिति में भी, चाहते हुए भी तथा न चाहते…
तुम (अपने शासकों की बात) सुनो और अनुसरण करो, कठिन परिस्थिति में भी तथा आसान परिस्थिति में भी, चाहते हुए भी तथा न चाहते हुए भी एवं उस समय भी जब तुमपर किसी और को तरजीह दी जाए।
अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "तुम (अपने शासकों की बात) सुनो और अनुसरण करो, कठिन परिस्थिति में भी तथा आसान परिस्थिति में भी, चाहते हुए भी तथा न चाहते हुए भी एवं उस समय भी जब तुमपर किसी और को तरजीह दी जाए।"
[सह़ीह़] [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
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इस हदीस में बताया गया है कि एक मुसलमान पर हर हाल में शासकों की बात मानना और उनके अदेशों का पालन करना ज़रूरी है, जब तक उसे किसी गुनाह या ऐसी बात का पाबंद न बनाया जाए, जिसके पालन की वह क्षमता न रखता हो, यद्यपि उसे इसमें कभी-कभी कठिनाई का भी सामना करना पड़े या उसके कुछ अधिकार नष्ट हो जाएँ। दरअसल ऐसा उसे साधारण हित को व्यक्तिगत हित पर आगे रखते हुए करना चाहिए।التصنيفات
जनता पर इमाम (शासनाध्यक्ष) का अधिकार