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1- धर्म शुभचिंतन का नाम है।
2- तुम अल्लाह से डरते रहना और अपने शासकों के आदेश सुनना तथा मानना। चाहे शासक एक हबशी ग़ुलाम ही क्यों न हो। तुम मेरे बाद बहुत ज़्यादा मतभेद देखोगे। अतः तुम मेरी सुन्नत तथा नेक और सत्य के मार्ग पर चलने वाले ख़लीफ़ागण की सुन्नत पर चलते रहना।
3- वे तुम्हें नमाज़ पढ़ाएँगे; अब यदि सही-सही पढ़ाएँगे तो तुम्हारे लिए होगी और यदि ग़लती करेंगे तो तुम्हारे लिए सही और उनके विरुद्ध होगी।
4- सुनते रहो और मानते रहो। क्योंकि उन्हें जो ज़िम्मेवारी दी गई है, उसका भार उन्हें उठाना है और तुम्हें जो ज़िम्मेवारी दी गई है, उसका भार तुम्हें उठाना है।
5- तथा जो किसी इमाम की बैअत करे और उसे अपना हाथ तथा अपने दिल का फल दे दे, उसे चाहिए कि जहाँ तक हो सके, उसका अनुसरण करे। फिर अगर कोई दूसरा उसे अपने मातहत करने के लिए उससे झगड़ा करे, तो उसकी गरदन उड़ा दो।
6- तुममें से जिसे मैं किसी प्रशासनिक काम की ज़िम्मेवारी दूँ, फिर उसने हमसे एक सूई या उससे भी छोटी चीज़ छिपाई, तो वह ख़यानत में शुमार होगा, जिसे लेकर वह क़यामत के दिन उपस्थित होगा।
7- तुम (अपने शासकों की बात) सुनो और अनुसरण करो, कठिन परिस्थिति में भी तथा आसान परिस्थिति में भी, चाहते हुए भी तथा न चाहते हुए भी एवं उस समय भी जब तुमपर किसी और को तरजीह दी जाए।
8- जब हम अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के हाथ पर सुनने तथा आज्ञा का पालन पर बैअत करते, तो आप हमसे फ़रमाते : "जहाँ तक हो सके, इसका पालन करना।।”
9- एक मुस्लिम व्यक्ति पर ज़रूरी है कि वह सुने और आज्ञा का पानल करे। चाहे उसे पसंद हो या नापसंद। यह और बात है कि उसे किसी गुनाह का आदेश दिया जाए। यदि उसे किसी गुनाह का आदेश दिया जाता है, तो सुनना और आज्ञा का पालन करना ज़रूरी नहीं है।
10- जो सुलतान का अपमान करता है, वह अल्लाह का अपमान करता है।
11- बात सुनो और अनुसरण करो, यद्यपि तुम्हारा शासक किसी हबशी दास ही को क्यों न बना दिया जाए, जिसका सर किशमिश की तरह हो।
12- जिसने मेरी आज्ञा का पानल किया, उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया और जिसने मेरी अवज्ञा की, उसने अल्लाह की अवज्ञा की। जो अमीर की आज्ञा का पालन करता है, वह मेरी आज्ञा का पालन करता है और जो अमीर की अवज्ञा करता, वह मेरी अवज्ञा करता है।
13- तुम्हारे सबसे अच्छे शासक वह हैं, जिन्हें तुम पसंद करते हो और वे तुम्हें पसंद करते हैं। इसी तरह, वे तुम्हारे लिए दया की प्रार्थना करते हैं और तुम उनके लिए दया की प्रार्थना करते हो। जबकि तुम्हारे सबसे बुरे शासक वह हैं, जिन्हें तुम नापसंद करते हो और वे तुम्हें नापसंद करते हैं। इसी तरह, तुम उनपर लानत भेजते हो और वे तुमपर लानत भेजते हैं।
14- जब अल्लाह तआला, शासक या अधिकारी के साथ भलाई का इरादा करता है, तो उसे सच्चा सहायक प्रदान करता है, जो भूलने पर याद दिलाता है और याद रहने पर सहायता करता है। परन्तु, जब इसके विपरीत इरादा करता है, तो उसे बुरा सहायक प्रदान करता है, जो न भूलने पर याद दिलाता है, न याद रहने पर सहायता करता है
15- अल्लाह ने जितने भी नबी भेजे और जितने भी शासक बनाए, सबके दो प्रकार के सलाहकार होते हैं; एक वह सलाहकार जो भलाई का आदेश देता है और उसकी प्रेरणा देता है। दूसरा वह सलाहकार जो बुराई का आदेश देता है और उसी का प्रोत्साहन देता है
16- कोई वस्तु माँगने में हद से ज्यादा आग्रह मत करो। क्योंकि तुममें से कोई व्यक्ति जब मुझसे कोई चीज़ माँगता है और मुझे पसंद न होेने के बावजूद उसका सवाल मुझेस कोई वस्तु निकाल लेता है, तो मेरी दी हुई चीज़ में बरकत नहीं दी जाती।
17- हम लोग जब अपने बादशाहों के पास जाते हैं, तो ऐसी बातें करते हैं, जो बातें वहाँ से निकलने के बाद नहीं करते। उन्होंने उत्तर दिया : हम इसे अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के युग में निफ़ाक़ -पाखंड तथा ढ़ोंग- समझते थे।