जब हम अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के हाथ पर सुनने तथा आज्ञा का पालन पर बैअत करते, तो आप हमसे फ़रमाते :…

जब हम अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के हाथ पर सुनने तथा आज्ञा का पालन पर बैअत करते, तो आप हमसे फ़रमाते : "जहाँ तक हो सके, इसका पालन करना।।”

अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जब हम अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के हाथ पर सुनने तथा आज्ञा का पालन पर बैअत करते, तो आप हमसे फ़रमाते : "जहाँ तक हो सके, इसका पालन करना।।”

[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

الشرح

अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अनहुमा- बता रहे हैं कि सहाबा जब अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के हाथ पर बैअत करते, तो आप उन्हें शासक की बात सुनने तथा उसकी आज्ञा का पालन करने का आदेश देते तथा आज्ञापालन के साथ सामर्थ्य रखने की बंदिश लगा देते थे। इसका मतलब यह हुआ कि यदि किसी मुसलमान को शासक की ओर से ऐसी बात का पाबंद बनाया जाए, जो उसकी शक्ति से बाहर हो, तो उसपर उसकी आज्ञा का पालन करना ज़रूरी नहीं है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : "अल्लाह किसी प्राणी पर उसकी शक्ति से अधिक बोझ नहीं डालता।"

التصنيفات

जनता पर इमाम (शासनाध्यक्ष) का अधिकार