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किसी आदमी का यह कहना कि मैं अमुक-अमुक आयत भूल गया हूँ, नामुनासिब बात है। बल्कि वह भुला दिया गया है। क़ुरआन को लगातार…
किसी आदमी का यह कहना कि मैं अमुक-अमुक आयत भूल गया हूँ, नामुनासिब बात है। बल्कि वह भुला दिया गया है। क़ुरआन को लगातार याद करते रहो, क्योंकि क़ुरआन (गफलत बरतने वाले) लोगों के सीनों से निकल जाने के मामले में ऊँटों से भी ज़्यादा तेज़ है।
अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है, वह कहते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : "किसी आदमी का यह कहना कि मैं अमुक-अमुक आयत भूल गया हूँ, नामुनासिब बात है। बल्कि वह भुला दिया गया है। क़ुरआन को लगातार याद करते रहो, क्योंकि क़ुरआन (गफलत बरतने वाले) लोगों के सीनों से निकल जाने के मामले में ऊँटों से भी ज़्यादा तेज़ है।"
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]