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जब सदक़े का महत्व बयान करने वाली आयत उतरी तो हम अपनी पीठ पर बोझ उठाते (और उससे प्राप्त मज़दूरी को दान करते थे)। फिर एक…
जब सदक़े का महत्व बयान करने वाली आयत उतरी तो हम अपनी पीठ पर बोझ उठाते (और उससे प्राप्त मज़दूरी को दान करते थे)। फिर एक व्यक्ति आया और बहुत-सा धन दान किया तो मुनाफ़िकों ने कहाः यह रियाकार है तथा एक अन्य व्यक्ति आया और एक साअ दान किया तो कहने लगे कि अल्लाह को इसके एक साअ की ज़रूरत नहीं है। ऐसी परिस्थिति में यह आयत उतरीः "الذين يلمزون المطوعين من المؤمنين في الصدقات والذين لا يجدون إلا جهدهم" (अर्थात, जो लोग स्वेच्छा से देने वाले मोमिनों पर उनके दान के विषय में चोटें करते हैं और उन लोगों का उपहास करते हैं, जिनके पास उसके सिवा कुछ नहीं, जो वे मशक्कत उठाकर देते हैं, उनका उपहास अल्लाह ने किया और उनके लिए दुखदायी यातना है।)
अबू मसऊद उक़बा बिन अम्र अंसारी बदरी- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि जब सदक़े का महत्व बयान करने वाली आयत उतरी तो हम अपनी पीठ पर बोझ उठाते (और उससे प्राप्त मज़दूरी को दान करते थे)। फिर एक व्यक्ति आया और बहुत सा धन दान किया तो मुनाफ़िकों ने कहाः यह रियाकार है तथा एक अन्य व्यक्ति आया और एक साअ दान किया तो कहने लगे कि अल्लाह को इसके एक साअ की ज़रूरत नहीं है। ऐसी परिस्थिति में यह आयत उतरीः "الذين يلمزون المطوعين من المؤمنين في الصدقات والذين لا يجدون إلا جهدهم" (अर्थात, जो लोग स्वेच्छा से देने वाले मोमिनों पर उनके दान के विषय में चोटें करते हैं और उन लोगों का उपहास करते हैं, जिनके पास उसके सिवा कुछ नहीं, जो वे मशक्कत उठाकर देते हैं, उनका उपहास अल्लाह ने किया और उनके लिए दुखदायी यातना है।)
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
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