निफ़ाक़

निफ़ाक़

1- "मुनाफ़िक़ों पर सबसे भारी नमाज़ इशा और फ़ज्र की नमाज़ है और अगर उन्हें इन नमाज़ों के सवाब का अंदाज़ा हो जाए, तो घुटनों को बल चलकर आएँ*। मैंने तो (एक बार) इरादा कर लिया था कि किसी को नमाज़ पढ़ाने का आदेश दूँ और वह नमाज़ पढ़ाए, फिर कुछ लोगों को साथ लेकर, जो लकड़ी गट्ठर लिए हुए हों, ऐसे लोगों के यहाँ जाऊँ, जो नमाज़ के लिए नहीं आते और उनको उनके घरों के साथ जला डालूँ।"

4- जब सदक़े का महत्व बयान करने वाली आयत उतरी तो हम अपनी पीठ पर बोझ उठाते (और उससे प्राप्त मज़दूरी को दान करते थे)। फिर एक व्यक्ति आया और बहुत-सा धन दान किया तो मुनाफ़िकों ने कहाः यह रियाकार है तथा एक अन्य व्यक्ति आया और एक साअ दान किया तो कहने लगे कि अल्लाह को इसके एक साअ की ज़रूरत नहीं है। ऐसी परिस्थिति में यह आयत उतरीः "الذين يلمزون المطوعين من المؤمنين في الصدقات والذين لا يجدون إلا جهدهم" (अर्थात, जो लोग स्वेच्छा से देने वाले मोमिनों पर उनके दान के विषय में चोटें करते हैं और उन लोगों का उपहास करते हैं, जिनके पास उसके सिवा कुछ नहीं, जो वे मशक्कत उठाकर देते हैं, उनका उपहास अल्लाह ने किया और उनके लिए दुखदायी यातना है।)