إعدادات العرض
मुनाफ़िक़ों पर सबसे भारी नमाज़ इशा और फ़ज्र की नमाज़ है और अगर उन्हें इन नमाज़ों के सवाब का अंदाज़ा हो जाए, तो…
मुनाफ़िक़ों पर सबसे भारी नमाज़ इशा और फ़ज्र की नमाज़ है और अगर उन्हें इन नमाज़ों के सवाब का अंदाज़ा हो जाए, तो घुटनों को बल चलकर आएँ
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "मुनाफ़िक़ों पर सबसे भारी नमाज़ इशा और फ़ज्र की नमाज़ है और अगर उन्हें इन नमाज़ों के सवाब का अंदाज़ा हो जाए, तो घुटनों को बल चलकर आएँ। मैंने तो (एक बार) इरादा कर लिया था कि किसी को नमाज़ पढ़ाने का आदेश दूँ और वह नमाज़ पढ़ाए, फिर कुछ लोगों को साथ लेकर, जो लकड़ी गट्ठर लिए हुए हों, ऐसे लोगों के यहाँ जाऊँ, जो नमाज़ के लिए नहीं आते और उनको उनके घरों के साथ जला डालूँ।"
الترجمة
العربية Bosanski English Español فارسی Français Bahasa Indonesia Русский Türkçe اردو 中文 বাংলা ئۇيغۇرچە Kurdî Hausa Português മലയാളം తెలుగు Kiswahili தமிழ் မြန်မာ Deutsch 日本語 پښتو Tiếng Việt অসমীয়া Shqip Svenska Čeština ગુજરાતી አማርኛ Yorùbá Nederlands සිංහල ไทย دری Кыргызча Lietuvių Kinyarwanda नेपाली Malagasy Italiano or ಕನ್ನಡ Oromoo Română Soomaali Српски Wolof Українська Moore Tagalog Azərbaycan ქართული Magyarالشرح
इस हदीस में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मुनाफ़िक़ों तथा नमाज़ में और ख़ास तौर से इशा तथा फ़ज्र की नमाज़ में उनकी सुस्ती के बारे में बता रहे हैं। आप यह भी बता रहे हैं कि अगर मुनाफ़िक़ों को पता हो जाए कि इन दो नमाज़ों को मुसलमानों के साथ जमात में शरीक होकर पढ़ने पर कितनी बड़ी मात्रा में नेकी मिलनी है, तो वे उसी तरह घुटनों तथा हाथों के बल चलकर इन दो नमाज़ों में शरीक हों, जिस तरह चलना सीखने से पहले बच्चा घुटनों तथा हाथों के बल पर आगे बढ़ता है। ... अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक बार इस बात का इरादा कर लिया था कि किसी को अपनी जगह पर नमाज़ पढ़ाने का आदेश दे दें, फिर कुछ लोगों को साथ लेकर, जो लकड़ियों के गट्ठर लिए हुए हों, उन लोगों के पास जाएँ, जो नमाज़ पढ़ने के लिए जमात में शामिल नहीं होते और उनके समेत उनके घरों को जला डालें। क्योंकि उन्होंने जमात में शामिल न होकर जो गुनाह किया है, वह बहुत बड़ा है। लेकिन आपने ऐसा नहीं किया, क्योंकि घरों में मासूम औरतें, बच्चे और माज़ूर (अक्षम) लोग भी होते हैं, जिनका कोई गुनाह नहीं है।فوائد الحديث
मस्जिद में उपस्थित होकर जमात के साथ नमाज़ न पढ़ने की भयानकता।
मुनाफ़िक़ इबादत केवल दिखावे के तौर पर करते हैं। यही कारण है कि वह मस्जिद उसी समय जाते हैं, जब लोग देख रहे हों।
इशा तथा फ़ज्र की नमाज़ जमात के साथ पढ़ने का बड़ा सवाब, और इस बात का उल्लेख कि यह दोनों नमाज़ें इस लायक़ हैं कि इन्सान इनमें अवश्य आए चाहे उसे घुटनों के बल चलकर आना पड़े।
इशा तथा फ़ज्र की नमाज़ की पाबंदी मुनाफिकत से सुरक्षित होने की निशानी है और इन दो नमाज़ों में शामिल न होना मुनाफ़िक़ों की विशेषता है।