अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जितने युद्ध किए, मैं उनमें से किसी युद्ध में भी शरीक होने से पीछे नहीं…

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जितने युद्ध किए, मैं उनमें से किसी युद्ध में भी शरीक होने से पीछे नहीं रहा। मैं केवल तबूक युद्ध में पीछे रह गया था। वैसे तो बद्र युद्ध में भी साथ नहीं था, लेकिन बद्र युद्ध में पीछे रह जाने पर आपने किसी पर नाराज़गी व्यक्त नहीं की थी।

अब्दुल्लाह बिन कअब बिन मालिक रिवायत करते हैं। याद रहे कि जब कअब बिन मालिक की आँखों की रोशनी चली गई, तो उनके बेटों में से अब्दुल्लाह ही उन्हें जहाँ जाना-आना होता ले जाते। वह कहते हैं कि मैंने कअब बिन मालिक से तबूक युद्ध में उनके अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से पीछे रह जाने की घटना सुनी। कअब बिन मालिक- रज़ियल्लाहु अन्हु- ने बतायाः अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जितने युद्ध किए, मैं उनमें से किसी युद्ध में भी शरीक होने से पीछे नहीं रहा। मैं केवल तबूक युद्ध में पीछे रह गया था। वैसे तो बद्र युद्ध में भी साथ नहीं था, लेकिन बद्र युद्ध में पीछे रह जाने पर आपने किसी पर नाराज़गी व्यक्त नहीं की थी, क्योंकि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) क़ुरैश के एक क़ाफ़िले को दबोचने का इरादा करके निकले थे और अल्लाह ने पहले से समय निर्धारित किए बिना ही मुसलमानों का सामना शत्रु से करा दिया था। मैं तो अक़बा की रात भी अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ मौजूद था, जहाँ हमने इस्लाम पर क़ायम रहने की प्रतिज्ञा ली थी। यद्यपि लोगों में बद्र युद्ध की चर्चा अधिक है, लेकिन मैं यह बात पसंद नहीं करता कि मुझे अक़बा की रात के बदले बद्र युद्ध में साथ रहने का अवसर मिला होता। तबूक युद्ध में अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से पीछे रहने की घटना इस प्रकार है कि मैं जिस ज़माने में तबूक युद्ध से पीछे रहा, उस समय इतना शक्तिशाली और संपन्न था कि पहले कभी नहीं हुआ था। अल्लाह की क़सम! उससे पहले मेरे पास दो ऊँटनियाँ कभी एकत्र नहीं हुई थीं, जबकि इस अवसर पर मेरे पास दो ऊँटनियाँ मौजूद थीं। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का सिद्धांत यह था कि जब किसी युद्ध में जाने का इरादा करते, तो उसे पूरे तौर पर ज़ाहिर न होने देते थे बल्कि किसी दूसरे स्थान का नाम लेते। परन्तु, यह युद्ध चूँकि प्रचंड गर्मी में हुआ और यात्रा लंबी तथा मरुभूमि की थी और शत्रु की भारी संख्या का सामना था, इसलिए आपने मुसलमानों के सामने मामला स्पष्ट कर दिया, ताकि वे अच्छी तरह युद्ध की तैयारी कर लें। उन्हें वह दिशा भी बता दी, जिधर आपको जाना था। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ मुसलमान बड़ी संख्या में थे और कोई पंजी नहीं थी, जो उनके नामों को सुरक्षित रखती। कअब (रज़ियल्लाहु अंहु) कहते हैंः स्थिति ऐसी थी कि यदि कोई व्यक्ति युद्ध से अनुपस्थित रहना चाहता, वह यह सोच सकता था कि यदि वह्य के द्वारा आपको सूचना न दी गई तो किसी को मेरी अनुपस्थिति का पता न चल सकेगा। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उस युद्ध का इरादा ऐसे समय में किया था, जब फल पक चुके थे और पेड़ों के साये बड़े मनोरम लग रहे थे तथा मैं उनकी ओर खिंचाव महसूस कर रहा था। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने और आपके साथ मुसलमानों ने तैयारी शुरू कर दी। मेरी हालत यह थी कि मैं सुब्ह को इस इरादे से निकलता कि मैं भी आपके साथ मिलकर तैयारी करूँगा, लेकिन शाम को वापस आता तो कोई निर्णय न लिया होता। फिर मैं अपने दिल में कहता कि मैं जब चाहूँ, तैयारी कर सकता हूँ। इसी तरह मेरा समय बीतता गया और लोग पूरी तनमयता से तैयारी में लगे रहे। फिर एक दिन सुब्ह के समय अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और आपके साथ मुसलमान निकल पड़े, जबकि मैं अपनी तैयारी के बारे में कोई निर्णय न ले सका। मैं सुब्ह को आया और वापस हो गया, कोई फ़ैसला न कर सका। मेरे साथ यही असमंजस की स्थिति बनी रही, यहाँ तक कि लोग तेज़ी से निकल गए और युद्ध में शामिल होने का समय हाथ से निकल गया। फिर मैंने यह इरादा किया कि मैं भी चल पड़ूँ और उनसे जा मिलूँ। काश, ऐसा भी कर लिया होता। लेकिन यह सौभाग्य भी प्राप्त न कर सका। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के जाने के बाद जब मैं लोगों के बीच निकलता तो जो बात मेरे दुःख का कारण बनती, यह थी कि मुझे अपना कोई आदर्श नज़र नहीं आ रहा था, सिवाए उस व्यक्ति के जिसपर मुनाफ़िक़ होने का लांछन लगा हुआ था या ऐसे कमज़ोर लोगों के जिन्हें अल्लाह ने असमर्थ घोषित कर रखा था। उधर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने तबूक पहुँचने से पहले रास्ते में मुझे कहीं याद नहीं किया, यहाँ तक कि जब तबूक पहुँच गए, तो वहाँ लोगों के साथ बैठकर कहाः कअब बिन मालिक ने क्या किया? बनू सलमा के एक व्यक्ति ने कहाः अल्लाह के रसूल! उसे उसकी दो चादरों ने रोक रखा है और वह अपने दोनों पहलुओं को देखने में व्यस्त होगा। यह सुन मुआज़ बिन जबल- रज़ियल्लाहु अन्हु- ने कहाः तुमने बहुत बुरी बात कही है। अल्लाह के रसूल! हमने उसके अंदर भलाई के सिवा कुछ नहीं देखा। यह बात-चीत सुनकर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) खामोश हो गए। यह बातें हो रही थीं कि आपने एक सफ़ेदपोश व्यक्ति को मरीचिका को चीरते हुए आते देखा और फ़रमायाः अबू ख़ैसमा हो जा। देखा गया कि वह अबू ख़ैसमा अंसारी ही थे। यह वही सहाबी हैं, जिनके एक साअ खजूर दान करने पर मुनाफ़िक़ों ने कटाक्ष किया था। कअब- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैंः जब मुझे यह सूचना मिली कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तबूक से वापसी के लिए निकल पड़े हैं तो मैं दुख से घिर गया और झूठे बहाने बनाने का सोचने लगा और मन ही मन कहने लगा कि मैं कल आपकी नाराज़गी से कैसे बच सकता हूँ? इस संबंध में अपने परिवार के प्रत्येक समझदार व्यक्ति से मदद माँगने लगा। फिर जब यह कहा गया कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) आने ही वाले हैं, तो मुझसे सब झूठ जाता रहा और मैं समझ गया कि आपकी नाराज़गी से मैं किसी तरह बच नहीं सकता। मैंने आपसे सच बोलने का पक्का इरादा कर लिया। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सुब्ह के समय आए। आपका सिद्धांत था कि जब यात्रा से वापस आते तो पहले मस्जिद जाते, दो रकअत नमाज़ पढ़ते और लोगों से मिलने के लिए बैठ जाते। जब आपने ऐसा किया तो पीछे रह जाने वाले लोग आकर बहाने पेश करने और क़समें खाने लगे। इस तरह के लोग अस्सी से कुछ अधिक थे। आपने, उन्होंने जो कुछ ज़ाहिर किया, उसे मान लिया, उनसे बैअत ली और उनके लिए क्षमा याचना की और उनके दिल में छिपी बातों को अल्लाह के हवाले कर दिया। फिर मैं उपस्थित हुआ। मैंने सलाम किया तो नाराज़ व्यक्ति के अंदाज़ में मुसकुराए और फ़रमायाः आ जाओ। मैं आकर आपके सामने बैठ गया तो मुझसे फ़रमायाः तुम क्यों पीछे रह गए थे? क्या तुमने अपनी सवारी नहीं खरीदी थी? कअब (रज़ियल्लाहु अंहु) कहते हैं कि मैंने कहाः अल्लाह के रसूल, अल्लाह की क़सम, अगर मैं आपके सिवा दुनिया के किसी और व्यक्ति के सामने बैठा होता, तो मैं समझता हूँ कि कोई बहाना बनाकर उसकी नाराज़गी से बच सकता था, क्योंकि मैं बात करने के मामले में निपुण हूँ। लेकिन अल्लाह की क़सम, मुझे पता है कि यदि आज मैंने आपसे झूठी बात बयान की जिससे आप मुझसे राज़ी हो जाएँ, तो कुछ दूर नहीं कि अल्लाह आपको मुझसे नाराज़ कर दे। और अगर आपसे सच्ची बात बयान की, जिससे आप मुझसे नाराज़ हो जाएँ, लेकिन उसमें मैं शक्तिशाली एवं महान अल्लाह की ओर से अच्छे परिणाम की आशा रखता हूँ। अल्लाह की क़सम, मेरे साथ कोई असमर्थता नहीं थी। अल्लाह की क़सम, मैं शक्ति और संपन्नता के मामले में, आपसे पीछे रहने के समय से बेहतर कभी नहीं रहा। कअब (रज़ियल्लाहु अंहु) कहते हैं कि यह सुन अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः इसने सब कुछ सच-सच बता दिया है। अब जाओ, प्रतीक्षा करो, यहाँ तक कि अल्लाह तुम्हारे बारे में कोई निर्णय कर दे। बनू सलमा के कुछ लोग चल पड़े। वह मेरे पीछे-पीछे चल रहे थे और कहे जा रहे थेः अल्लाह की क़सम, हमें नहीं पता कि तुमने इससे पहले कोई गुनाह किया हो। तुमसे तो इतना भी न हो सका कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सामने उस तरह का कोई बहाना पेश कर देते, जो और पीछे रहने वालों ने पेश किए हैं। तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की क्षमा याचना काफ़ी हो जाती। कअब- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि उन्होंने मुझे इतना कोसा कि मैंने अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास वापस जाकर खुद को झुठला देने का इरादा कर लिया। फिर मैंने उन लोगों से पूछा कि क्या मेरे अतिरिक्त भी किसी को इस परिस्थिति का सामना है? उन्होंने कहाः हाँ, तुम्हारे साथ और दो लोगों को इस परिस्थिति का सामना है। उन्होंने भी उसी तरह की बात कही है, जो तुमने कही है और उन्हें भी उसी तरह का उत्तर मिला है, जो तुम्हें मिला है। वह कहते हैं कि मैंने पूछाः वह दोनों व्यक्ति कौन हैं? उन्होंने जवाब दियाः मुरारा बिन रबी अमरी और हिलाल बिन उमय्या वाक़िफ़ी हैं। उन्होंने मेरे सामने दो ऐसे आदमियों के नाम लिए, जो सत्कर्मी थे और बद्र युद्ध में शरीक हो चुके थे तथा वह मेरे लिए आदर्श हो सकते थे। जब उन लोगों ने मुझसे उन दोनों का ज़िक्र किया, तो मैं (इरादा बदलने के बजाय) अपने पूर्व के इरादे पर क़ायम रहा। उसके बाद अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने पीछे रहने वालों में से हम तीन लोगों से बात करने से मना कर दिया। अतः लोग हमसे बचने लगे (या कहा कि लोग हमारे लिए बदल गए)। यहाँ तक कि धरती मेरे लिए पराई बन गई। यह वह धरती नहीं रह गई थी, जिसे मैं जानता था। इसी अवस्था में हम पचास दिन रहे। मेरे दोनों साथी तो निढाल हो गए और घर बैठकर रोते रहे, लेकिन मैं उन लोगों से जवान और मज़बूत था। मैं बाहर निकलता, मुसलमानों के साथ नमाज़ में शामिल होता और बाज़ारों में घूमता, लेकिन कोई मुझसे बात नहीं करता। जब अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- नमाज़ के बाद मस्जिद में बैठे होते, तो मैं आपके पास जाकर सलाम करता और मन ही मन यह सोचता रहता कि आपने सलाम के उत्तर में होंट हिलाए या नहीं? फिर मैं आपके निकट ही नमाज़ पढ़ने लगता और नज़र बचाकर आपको देखता रहता। जब मैं नमाज़ पर ध्यान दे देता, तो आप मेरी ओर देखते और जब मैं आपकी ओर देखता, तो नज़र फेर लेते। जब मुझसे मुसलमानों की बेरुखी का मामला खिंचता चला गया, तो एक दिन मैं अबू क़तादा के बाग की दीवार फलाँगकर अंदर चला गया। वह मेरे चचेरे भाई और सबसे प्रिय दोस्त थे। मैंने उसे सलाम किया तो अल्लाह की क़सम खाकर कहता हूँ कि उसने मेरे सलाम का उत्तर नहीं दिया। मैंने उससे कहा कि अबू क़तादा, मैं तुझे अल्लाह का वास्ता देकर पूछता हूँ, क्या तू जानता है कि मैं अल्लाह और उसके रसूल - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से प्यार करता हूँ। उसने कोई उत्तर नहीं दिया। मैंने दोबारा पूछा, लेकिन वह खामोश रहा। मैंने फिर पूछा, तो उसने कहाः अल्लाह और उसके रसूल ही बेहतर जानते हैं। उसका उत्तर सुन मेरी आँखें भर आईं। मैं दीवार फाँदकर वापस आ गया। एक दिन मैं मदीने के बाज़ार से गुज़र रहा था कि शाम का एक नबती, जो गल्ला बेचने के लिए मदीना आया था, कह रहा था कि मुझे कअब बिन मालिक का पता कौन बता सकता है? ऐसे में, लोग मेरी ओर इशारा करके उसे बताने लगे। वह मेरे पास आया और मुझे ग़स्सान के राजा का एक पत्र दिया। मुझे पढ़ना-लिखना आता था। उसे पढ़ा, तो उसमें लिखा थाः "अम्मा बाद, मुझे ख़बर मिली है कि तुम्हारे साथी ने तुमपर अत्याचार किया है। हालाँकि अल्लाह ने तुम्हें अपमान और बरबादी का पात्र नहीं बनाया है। तुम हमारे पास चले आओ, हम तुम्हारा दुःख-दर्द बाँट लेंगे।" उसे पढ़ने के बाद मैंने कहाः यह भी एक परीक्षा है। मैं वह पत्र लेकर तन्नूर के पास गया और उसे उसमें झोंक दिया। फिर जब पचास में से चालीस दिल बीत गए और वह्य के अवतरण का सिलसिला बंद हो गया, तो अचानक एक दिन मेरे पास अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का संदेशवाहक आया और कहाः अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने आपको अपनी पत्नी से अलग रहने का आदेश दिया है। मैंने कहाः मैं उसे तलाक दे दूँ या क्या करूँ? उसने कहाः तलाक न दो, सिर्फ़ उससे अलग रहो और उसके निकट न जाओ। मेरे दोनों साथियों को भी इसी तरह का आदेश दिया गया था। मैंने अपनी पत्नी से कहाः तुम मैके चली जाओ और इस मामले में कोई निर्णय आने तक वहीं रहो। फिर हिलाल बिन उमय्या की पत्नी अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आई और कहने लगीः ऐ अल्लाह के रसूल, हिलाल बिन उमय्या एक बहुत बूढ़े और कमज़ोर व्यक्ति हैं। उनके पास सेवा के लिए कोई नौकर भी नहीं है। क्या आप नापसंद करेंगे कि मैं उनकी सेवा करूँ? आपने फ़रमायाः "नहीं, लेकिन वह तेरे निकट न आए।" उसने कहाः अल्लाह की क़सम, उन्हें तो किसी बात का होश भी नहीं है। जिस दिन यह घटना घटी है, उस दिन से आज तक निरंतर रोए जा रहे हैं। यह सुन मेरे परिवार के कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि अगर तुम भी अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल- से अपनी पत्नी के बारे में अनुमति ले लो तो क्या बुराई है? आपने तो हिलाल बिन उमय्या की पत्नी को उनकी सेवा करने की अनुमति दे दी है। मैंने कहाः मैं अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से उसके बारे में अनुमति नहीं माँगूँगा। पता नहीं मेरे अनुमति माँगने पर आप क्या जवाब देंगे, जबकि मैं एक जवान व्यक्ति हूँ। इसी अवस्था में दस दिन बीत गए और हमसे बात-चीत बंद किए जाने को पचास दिन पूरे हो गए। पचासवीं रात की सुबह को मैं अपने एक घर की छत पर फ़ज्र की नमाज़ पढ़कर बैठा हुआ था और मेरी हालत हूबहू वही थी जो अल्लाह ने बयान की है कि मैं अपनी जान से तंग था धरती अपने विस्तार के बावजूद मुझपर तंग हो चुकी थी कि अचानक मैंने किसी पुकारने वाले की आवाज़ सुनी, जो सिला पर्वत के ऊपर चढ़कर अपनी पूरी आवाज़ में पुकार रहा थाः काब बिन मालिक खुश हो जाओ। मैं यह सुनते ही सजदे में गिर गया और समझ गया कि परीक्षा का समय समाप्त हो गया है। दरअसल अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़ज़्र की नमाज़ के बाद हमारी तौबा कबूल होने का ऐलान कर दिया था। अतः लोग हमें शुभ सूचना देने के लिए दौड़ पड़े। कुछ लोग शूभ सूचना देने के लिए मेरे दोनों साथियों की ओर चल दिए और एक आदमी मेरी ओर घोड़े पर सवार होकर चल पड़ा। इसी बीच असलम क़बीले का एक व्यक्ति दौड़ता हुआ मेरी ओर निकला और पहाड़ पर चढ़कर अवाज़ लगा दी। आवाज़ घोड़े से तेज़ निकली। जिसकी आवाज़ मैंने सुनी थी, जब वह मुझे खुशख़बरी देने के लिए आया, तो मैंने अपने दोनों कपड़े उतारकर खुशखबरी सुनाने के बदले में उसे पहना दिए। अल्लाह की क़सम, उस दिन मेरे पास उन दोनों कपड़ों के अलावा और कोई कपड़ा नहीं था। मैंने दो कपड़े उधार लेकर पहने और अल्लाह के रसूल - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के इरादे से चल पड़ा। लोग दलों में मुझसे मिल रहे थे और तौबा कबूल होने की मुबारकबाद देते हुए कह रहे थेः तुम्हें मुबारक हो कि अल्लाह ने तुम्हारी तौबा कबूल कर ली। मैं मस्जिद में गया तो देखा कि अल्लाह के रसूल - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- लोगों के साथ बैठे हुए हैं। मुझे देख तलहा बिन उबैदुल्लाह दौड़ते हुए आए, मुझसे हाथ मिलाया और मुबारकबाद दी। अल्लाह की क़सम उनके सिवा कोई मुहाजिर खड़ा नहीं हुआ। कअब- रज़ियल्लाहु अन्हु- तलहा - रज़ियल्लाहु अन्हु- की इस गर्मजोशी को कभी न भूलते थे। कअब- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि जब मैंने अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को सलाम किया, तो आपने खुशी से दमकते हुए चेहरे के साथ फ़रमायाः "तुम्हें यह दिन मुबारक हो, जो तुम्हारे जीवन का, जबसे तुम्हारी माँ ने तुम्हें जना है, सबसे उत्तम दिन है।" मैंने कहाः अल्लाह के रसूल, यह आपकी ओर से है या अल्लाह की ओर से? फ़रमायाः "मेरी ओर से नहीं, बल्कि सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह की ओर से।" अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- प्रसन्न होते, तो आपका चेहरा ऐसे दमक उठता, जैसे चाँद का टुकड़ा हो। हम आपके चेरहे से आपकी प्रसन्नता को भाँप लेते थे। जब मैं आपके आगे बैठ गया, तो कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल, इस तौबा की खुशी में मैं चाहता हूँ कि अपना सारा माल अल्लाह और उसके रसूल के लिए दान कर दूँ। अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमायाः "सब नहीं, अपना कुछ धन अपने पास भी रखो। यह तुम्हारे लिए बेहतर है।" मैंने कहाः मैं खैबर का अपना हिस्सा अपने पास रखता हूँ। तथा मैंने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल, अल्लाह ने मुझे सत्य के कारण मुक्ति दी है और मैं अपनी तौबा की खुशी में यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि जब तक जीवित रहूँगा, कभी झूठ नहीं बोलूँगा। अल्लाह की क़सम, जबसे मैंने अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से इस प्रतिज्ञा का ज़िक्र किया, मैं किसी मुसलमान को नहीं जानता, जिसपर अल्लाह ने सच कहने कर कारण उतना उपकार किया हो, जितना मुझपर किया है। अल्लाह की क़सम, जबसे मैंने अल्लाह के रसूल - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से यह बात कही, उस दिन से आज तक मैंने झूठ नहीं बोला और आशा है कि अल्लाह जीवन के बाकी बचे हुए दिनों में भी मुझे इससे सुरक्षित रखेगा। वह कहते हैं कि इसके बाद अल्लाह ने यह आयतें उतारींः "अल्लाह ने नबी तथा मुहाजिरीन और अंसार पर दया की, जिन्होंने तंगी के समय आपका साथ दिया, इसके पश्चात कि उनमें से कुछ लोगों के दिल कुटिल होने लगे थे। फिर उनपर दया की। निश्चय वह उनके लिए करुणामय दयावान है। तथा उन तीनों पर, जिनका मामला विलंबित कर दिया गया था और जिनपर धरती अपने विस्तार के बावजूद तंग हो गई और उनपर उनके प्राण संकीर्ण हो गए और उन्हें विश्वास था कि अल्लाह के सिवा उनके लिए कोई शरणागार नहीं है, परन्तु उसी की ओर। फिर उनपर दया की, ताकि तौबा कर लें। वास्तव में अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है। ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो, तथा सच्चों के साथ हो जाओ।" (सूरा अत-तौबाः 177-119) कअब - रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैंः अल्लाह की क़सम, जबसे अल्लाह ने मुझ इस्लाम की राह दिखाई है, उसके बाद से अल्लाह ने मुझे जो नेमतें प्रदान की हैं, उनमें मेरी नज़र में, सबसे बड़ी नेमत यह है कि मुझे अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के आगे सच बोलने की सामर्थ्य प्रदान की गई और मैं झूठ बोलकर हलाक न हुआ, जैसे दूसरे वह लोग हलाक हो गए, जिन्होंने झूठ बोला था। क्योंकि अल्लाह तआला ने वह्य उतारते समय झूठ बोलने वालों के बारे में ऐसे बुरे शब्द प्रयोग किए हैं, जो किसी और के बारे में प्रयोग नहीं किए। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः "वह तुम्हारे सामने अल्लाह की क़सम खाएँगे, जब तुम उनकी ओर वापस आओगे, ताकि तुम उनसे विमुख हो जाओ, तो तुम उनसे विमुख हो जाओ, वास्तव में वे मलीन हैं और उनका आवास नरक है, उन कर्मों के बदले जो वे क्या करते थे। वे तुम्हारे सामने क़समें खाएँगे, ताकि तुम उनसे राज़ी हो जाओ, अगर तुम उनसे राज़ी हो भी गए, तो अल्लाह अवज्ञाकारी लोगों से राज़ी नहीं होता।" (सूरा अत-तौबाः 95-96) कअब - रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैंः दरअसल अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने हम तीन लोगों के मामले उन लोगों से अलग करके विलंबित कर दिया था, जिन्होंने आपके सामने झूठी क़समें खाई थीं। आपने उनसे बैअत ले ली थी और उनके हक़ में माफ़ी की दुआ कर दी थी। जबकि आपने हमारे मामले को लंबित रख दिया, यहाँ तक कि खुद अल्लाह ने निर्णय कर दिया। फ़रमायाः "وعلى الثلاثة الذين خلفوا" (अर्थात, उन तीन लोगों की तौबा भी क़बूल कर ली, जो पीछे कर दिए गए थे।) यहाँ अल्लाह ने जिस पीछे करने का ज़िक्र किया है, उससे मुराद हमारा युद्ध से पीछे रहना नहीं है, बल्कि झूठी क़समें खाने वालों और बहाने पेश करने वालों से हमारे मामले को पीछे करके उनकी बात स्वीकार कर लेना है। (बुख़ारी एवं मुस्लिम) तथा एक रिवायत में हैः अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- तबूक युद्ध के लिए वृहस्पतिवार को निकले और आपको वृहस्पतिवार को निकलना पसंद था। तथा एक रिवायत में हैः आप यात्रा से हमेशा दिन में चाश्त के समय वापस आते। जब वापस आते तो पहले मस्जिद जाकर दो रकअत नमाज़ पढ़ते और उसके बाद वहीं बैठ जाते।

[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

التصنيفات

तौबा (प्रायश्चित)