अबू सालेह हमें आदेश दिया करते थे कि जब हममें से कोई सोने का इरादा करे, दाहिने करवट पर सोए।

अबू सालेह हमें आदेश दिया करते थे कि जब हममें से कोई सोने का इरादा करे, दाहिने करवट पर सोए।

सुहैल कहते हैं कि अबू सालेह हमें आदेश दिया करते थे कि जब हममें से कोई सोने का इरादा करे, दाहिने करवट पर सोए और फिर कहे : "ऐ आकाशों के रब, धरती के रब और महान अर्श के रब! हमारे और प्रत्येक वस्तु के रब! दानों और गुठलियों को चीरने वाले! तौरात, इंजील तथा फ़ुरक़ान उतारने वाले! मैं ऐसी प्रत्येक वस्तु से तेरी शरण माँगता हूँ, जिसकी पेशानी तेरे हाथ में है। ऐ अल्लाह! तू ही प्रथम है, तुझसे पूर्व कुछ नहीं था। तू ही अंतिम है, तेरे पश्चात कुछ नहीं होगा। तू ही ज़ाहिर है, तेरे ऊपर कुछ नहीं है। तू ही बात़िन है, तेरे बाद कुछ नहीं है। हमारा क़र्ज़ अदा कर दे और हमसे निर्धनता को दूर कर दे।" वह इस हदीस को अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- के वास्ते से नबी-सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से रिवायत करते थे।

[सह़ीह़] [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

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मुसीबत के समय के अज़कार