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कोई भी व्यक्ति अथवा कोई भी वस्तु अल्लाह से अधिक किसी ऐसी कष्टदायक बात पर सब्र करने वाली नहीं है, जो उसे सुनाई दे।…
कोई भी व्यक्ति अथवा कोई भी वस्तु अल्लाह से अधिक किसी ऐसी कष्टदायक बात पर सब्र करने वाली नहीं है, जो उसे सुनाई दे। लोग अल्लाह की संतान होने की बात करते हैं, लेकिन इसके बावजूद अल्लाह उन्हें सुख-शांति और रोज़ी देता है।
अबू मूसा अशअरी (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : “कोई भी व्यक्ति अथवा कोई भी वस्तु अल्लाह से अधिक किसी ऐसी कष्टदायक बात पर सब्र करने वाली नहीं है, जो उसे सुनाई दे। लोग अल्लाह की संतान होने की बात करते हैं, लेकिन इसके बावजूद अल्लाह उन्हें सुख-शांति और रोज़ी देता है।”
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
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अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "कोई भी व्यक्ति अल्लाह से अधिक सब्र करने वाला अथवा कोई भी वस्तु अल्लाह से अधिक सब्र करने वाली नहीं है।" यानी अल्लाह हर किसी से ज़्यादा सब्र करने वाला है। उसका एक नाम है 'अस-सबूर' है। यानी ऐसी हस्ती जो अवज्ञाकारियों को दंडित करने में जल्दबाज़ी से काम नहीं लेती। यह उसके एक और नाम 'अल-हलीम' (सहनशील) के अर्थ से निकट है। लेकिन 'अल-हलीम' के अंदर दंड से सुरक्षा का अर्थ अधिक पाया जाता है। आपने आगे फ़रमाया : "किसी कष्टदायक बात पर, जो उसे सुनाई दे।" यहाँ प्रयुक्त शब्द 'الأذى' का अर्थ है ऐसी बुराई और अप्रिय बात, जो बहुत महत्व एवं प्रभाव न रखती हो। अल्लाह ने स्वयं कहा है कि उसके बंदे उसकी हानि नहीं कर सकते। उसका फ़रमान है : "(हे नबी!) आपको वे काफ़िर उदासीन न करें, जो कुफ़्र में अग्रसर हैं। वे अल्लाह को कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे।" तथा एक हदीस-ए-क़ुदसी में है : "ऐ मेरे बंदो! तुम मेरी हानि करने की स्थिति में नहीं पहुँच सकते कि मेरी हानि करो और मुझे लाभ पहुँचाने की स्थिति में भी नहीं जा सकते कि मुझे लाभ पहुँचाओ।" यहाँ यह स्पष्ट कर दिया गया है कि सृष्टि अल्लाह की हानि नहीं कर सकती, लेकिन उसे कष्ट दे सकती है। फ़रमाया : "लोग अल्लाह की संतान होने की बात करते हैं" यानी आदम की संतान अल्लाह को कष्ट देने का काम ऐसी बातों को उससे संबद्ध करने के माध्यम से करती है, जिनसे वह पाक है। जैसे उसके बेटा, समकक्ष एवं उपासना में साझी होने का दावा करना। यह ऐसी बातें हैं, जिनसे वह पवित्र है। आगे फ़रमाया : "लेकिन इसके बावजूद अल्लाह उन्हें सुख-शांति और रोज़ी देता है।" यानी अल्लाह कुव्यवहार का बदला उपकार से देता है। बंदे उसके साथ कुव्यवहार करते हुए उसकी कमी दिखाते हैं, उसे बुरा-भला कहते हैं, उसके बारे में ऐसी बात करते हैं जिससे वह पवित्र है, उसके रसूलों को झुठलाते हैं, उसके आदेश की मुख़ालफ़त करते हैं और उसकी मना की हुई बातों में संलिप्त होते हैं, लेकिन वह उनके साथ उपकार करते हुए उन्हें स्वस्थ रखता है, बीमारियों से शिफ़ा देता है, दिन-रात विपत्तियों से सुरक्षित रखता है और आकाश एवं धरती की सारी चीजो़ं की सेवा लेकर उन्हें रोज़ी देता। यह उच्चतम कोटि का धैर्य, सहनशीलता और उपकार है।