ईर्ष्या, केवल दो प्रकार के लोगों से रखना जायज़ है; एक वह व्यक्ति, जिसे अल्लाह ने धन प्रदान किया हो तथा उसने उस धन को…

ईर्ष्या, केवल दो प्रकार के लोगों से रखना जायज़ है; एक वह व्यक्ति, जिसे अल्लाह ने धन प्रदान किया हो तथा उसने उस धन को सत्य के मार्ग में खर्च करने पर लगा दिया हो तथा दूसरा वह व्यक्ति, जिसे अल्लाह ने अंतर्ज्ञान प्रदान किया हो और वह उसी के अनुसार निर्णय करता हो और उसकी शिक्षा देता हो।

अब्दुल्लाह बिन मसऊद- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः ईर्ष्या केवल दो प्रकार के लोगों से रखना जायज़ है; एक वह व्यक्ति, जिसे अल्लाह ने धन प्रदान किया हो तथा उसने उस धन को सत्य के मार्ग में खर्च करने पर लगा दिया हो तथा दूसरा वह व्यक्ति, जिसे अल्लाह ने हिकमत (अंतर्ज्ञान) प्रदान की हो और वह उसी के अनुसार निर्णय करता हो और उसकी शिक्षा देता हो। तथा अब्दुल्लाह बिन उमर- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमायाः "ईर्ष्या केवल दो मामलों में जायज़ है; एक वह व्यक्ति, जिसे अल्लाह ने क़ुरआन दिया हो और वह रात दिन पढ़ने में लगा हो और एक वह व्यक्ति, जिसे अल्लाह ने धन दिया हो और वह रात दिन उसे- अल्लाह के रास्ते में- खर्च करने में लगा हो।"

[सह़ीह़] [इसे दोनों रिवायतों के साथ बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

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क़ुरआन पर ध्यान केंद्रित करने की फ़ज़ीलत, नफ़ल सदक़ा