सुफ़्फ़ा वालों तथा आम सहाबा की दुनिया से निस्पृहता

सुफ़्फ़ा वालों तथा आम सहाबा की दुनिया से निस्पृहता

अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैंः मैंने सत्तर सुफ़्फ़ा वालों को देखा। उनमें से किसी के पास चोगा नहीं होता था। या तो लुंगी होती थी या फिर चादर, जिसे वे अपने गले से बाँध लेते थे, जो कभी आधी पिंडलियों तक पहुँचती थी, तो कभी टखनों तक। उसे वे अपने हाथों से पकड़े रहते थे, ताकि उनके गुप्तांग खुलने न पाएँ।

[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।]

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फ़ज़ीलतें तथा आदाब, सदाचारी बंदों के हालात