फ़ज़ीलतें तथा आदाब

फ़ज़ीलतें तथा आदाब

1- "क्या मैं तुम्हें सबसे बड़े गुनाहों के बारे में न बताऊँ?*" आपने यह बात तीन बार दोहराई। हमने कहा : अवश्य, ऐ अल्लाह के रसूल! तो आपने फ़रमाया : "अल्लाह का साझी बनाना और माता-पिता की बात न मानना।" यह कहते समय आप टेक लगाए हुए थे, लेकिन सीधे बैठ गए और फ़रमाया : "सुन लो, झूठी बात कहना (भी बड़ा गुनाह है)।" यह बात आप इतनी बार दोहराते रहे कि हमने कहा कि काश आप खामोश हो जाते।

5- "तुम लोग सात विनाशकारी वस्तुओं से बचो*।" लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! वह क्या-क्या हैं? आपने फ़रमाया : "अल्लाह का साझी बनाना, जादू, अल्लाह के हराम किए हुए प्राणी को औचित्य ना होने के बावजूद क़त्ल करना, ब्याज खाना, यतीम का माल खाना, युद्ध के मैदान से पीठ दिखाकर भागना और निर्दोष भोली-भाली मोमिन स्त्रियों पर व्यभिचार का आरोप लगाना।"

8- "जिसने इस बात की गवाही दी कि केवल अल्लाह ही सत्य पूज्य है, उसका कोई साझी नहीं है, एवं मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं, और ईसा भी अल्लाह के बंदे, उसके रसूल तथा उसका शब्द हैं, जिसे उसने मरयम की ओर डाला था और उसकी ओर से भेजी हुई आत्मा हैं, तथा जन्नत और जहन्नम सत्य हैं@, ऐसे व्यक्ति को अल्लाह जन्नत में दाख़िल करेगा, चाहे उसका अमल जैसा भी रहा हो।"

20- "जब दो मुसलमान अपनी-अपनी तलवारें लेकर आपस में भिड़ जाएँ तो मरने वाला और मारने वाला दोनों जहन्नमी हैं*।" मैंने सादर कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! यह तो मारने वाला है, (जिसका जहन्नमी होना तो समझ में आता है) लेकिन मरने वाला क्यों जहन्नमी होगा? आपने फ़रमाया : "उसकी नीयत भी दूसरे साथी को मारने की थी।"

21- "निस्संदेह, हलाल स्पष्ट है और हराम भी स्पष्ट है* तथा दोनों के बीच कुछ चीज़ें अस्पष्ट हैं, जिन्हें बहुत से लोग नहीं जानते। अतः, जो अस्पष्ट चीज़ों से बचा, उसने अपने धर्म और प्रतिष्ठा की रक्षा कर ली तथा जो अस्पष्ट चीज़ों में पड़ गया, वह हराम में पड़ गया। जैसे एक चरवाहा सुरक्षित चरागाह (पशुओं के चरने का स्थान) के आस-पास जानवर चराए, तो संभावना रहती है कि जानवर उसके अंदर चले जाएँ। सुन लो, हर बादशाह की सुरक्षित चरागाह होती है। सुन लो, अल्लाह की सुरक्षित चरागाह उसकी हराम की हुई चीज़ें हैं। सुन लो, शरीर के अंदर मांस का एक टुकड़ा है, जब वह सही रहेगा, तो पूरा शरीर सही रहेगा और जब वह बिगड़ेगा तो पूरा शरीर बिगड़ेगा। सुन लो, मांस का वह टुकड़ा, दिल है।"

24- "सभी कार्यों का आधार नीयतों पर है और इन्सान को उसकी नीयत के अनुरूप ही प्रतिफल मिलेगा। अतः, जिसकी हिजरत अल्लाह और उसके रसूल के लिए होगी, उसकी हिजरत अल्लाह और उसके रसूल के लिए होगी और जिसकी हिजरत दुनिया प्राप्त करने या किसी स्त्री से शादी रचाने के लिए होगी, उसकी हिजरत उसी काम के लिए होगी, जिसके लिए उसने हिजरत की होगी।" सहीह बुख़ारी की एक रिवायत के शब्द हैं : "@सभी कार्यों का आधार नीयतों पर है और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी नीयत के अनुरूप ही प्रतिफल मिलेगा*।"

37- एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहने लगा : मेरी सवारी हलाक हो चुकी है, अतः मुझे सवारी के लिए एक जानवर दीजिए। चुनांचे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "मेरे पास जानवर नहीं है।" यह सुन एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैं इसे एक व्यक्ति के बारे में बता सकता हूँ, जो इसे सवारी के लिए जानवर दे सकता है। इसपर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "@जिसने किसी अच्छे काम का मार्ग दिखाया, उसे उसके करने वाले के बराबर प्रतिफल मिलेगा*।"

51- “सच्चाई को मज़बूती से थाम लो, क्योंकि सच्चाई नेकी (सुकर्म) की राह दिखाती है और नेकी जन्नत की ओर ले जाती है।* आदमी सर्वदा सत्य बोलता है तथा सत्य की खोज में लगा रहता है, यहाँ तक कि अल्लाह के निकट सत्यवादी लिख लिया जाता है। तुम झूठ बोलने से बचो, क्योंकि झूठ बुराई की ओर ले जाता है और बुराई जहन्नम की ओर ले जाती है। आदमी सदा झूठ बोलता रहता है तथा झूठ ही की खोज में लगा रहता है, यहाँ तक कि अल्लाह के यहाँ झूठा लिख लिया जाता है।”

56- “जिसने दस बार 'ला इलाहा इल्लल्लाहु वह़दहु ला शरीका लहु, लहुल-मुल्कु व लहुल-हम्दु, व हुवा अला कुल्लि शैइन क़दीर' (अर्थात, अल्लाह के सिवा कोई वास्तविक पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं है, पूरा राज्य उसी का है और सब प्रशंसा उसी की है और उसके पास हर चीज़ का सामर्थ्य है।) कहा*, वह उस व्यक्ति के समान है, जिसने इसमाईल (अलैहिस्सलाम) की संतान में से चार दासों को मुक्त किया।”

77- अल्लह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने, जबकि मुआज़ रज़ियल्लाहु अनहु सवारी पर आपके पीछे बैठे थे, फ़रमाया : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैंं उपस्थित हूँ। आपने फिर कहा : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" उन्होंने दोबारा कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं उपस्थि हूँ! आपने फिर कहा : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" तो उन्होंने तीसरी बार कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं उपस्थित हूँ! तीसरी बार के बाद आपने फ़रमाया : "@जिस बंदे ने सच्चे दिल से यह गवाही दी कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के बंदे तथा उसके रसूल हैं, अल्लाह उसे जहन्नम पर हराम कर देगा*।" उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या मैं लोगों को आपकी यह बात बता न दूँ कि वे ख़ुश हो जाएँ? आपने फ़रमाया : "तब तो वे इसी पर भरोसा कर बैठेंगे।" चुनांचे मृत्यु के समय मुआज़ रज़ियल्लाहु अनहु ने गुनाह के भय से यह हदीस लोगों को बता दी।

78- मैं बच्चा था और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की देख-रेख में था। (खाना खाते समय) मेरा हाथ बर्तन में चारों ओर घूमा करता था। इसलिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझसे फ़रमाया : "@बच्चे, बिस्मिल्लाह पढ़ लिया करो, दाहिने हाथ से खाया करो और अपने सामने से खाया करो।*" चुनांचे उसके बाद हमेशा मैं इसी निर्देश के अनुसार खाना खाता रहा।

80- "पवित्रता आधा ईमान है, अल-हम्दु लिल्लाह तराज़ू को भर देता है, सुबहानल्लाह और अल-हम्दु लिल्लाह दोनों मिलकर आकाश एवं धरती के बीच के खाली स्थान को भर देते हैं*, नमाज़ नूर है, सदक़ा प्रमाण है, धैर्य प्रकाश है और क़ुरआन तुम्हारे लिए या तुम्हारे विरुद्ध प्रमाण है। प्रत्येक व्यक्ति जब रोज़ी की खोज में सुबह निकलता है, तो अपने नफ़्स को बेचता है। चुनांचे वह उसे आज़ाद करता है या उसका विनाश करता है।"

81- मैं अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पीछे एक गधे पर बैठा हुआ था, जिसका नाम उफ़ैर था। इसी दौरान आपने कहा : "ऐ मुआज़! क्या तुम जानते हो कि बंदों पर अल्लाह का अधिकार क्या है और अल्लाह पर बंदों का अधिकार क्या है?" मैंने कहा : अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानते हैं। आपने कहा : "@बंदों पर अल्लाह का अधिकार यह है कि बंदे उसकी इबादत करें और किसी को उसका साझी न बनाएँ। जबकि अल्लाह पर बंदों का अधिकार यह है कि अल्लाह किसी ऐसे व्यक्ति को अज़ाब न दे, जो किसी को उसका साझी न ठहराता हो*।" मैंने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या मैं लोगों को यह सुसमाचार सुना न दूँ? आपने उत्तर दिया : "यह सुसमाचार लोगों को न सुनाओ, वरना लोग भरोसा करके बैठ जाएँगे।"

82- एक व्यक्ति अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और पूछा कि ऐ अल्लाह के रसूल! दो वाजिब करने वाली चीज़ें क्या हैं? आपने उत्तर दिया : "@जो इस हाल में मरा कि किसी को अल्लाह का साझी नहीं बनाया, वह जन्नत में प्रवेश करेगा और जो इस हाल में मरा कि किसी को अल्लाह का साझी बनाता रहा, वह जहन्नम में जाएगा।"

84- "अल्लाह क़यामत के दिन मेरी उम्मत से एक व्यक्ति को चुनकर सारी सृष्टियों के सामने उपस्थित करेगा* और उसके सामने निन्यानवे रजिस्टरों को खोलकर रख देगा। हर रजिस्टर वहाँ तक फैला होगा, जहाँ नज़र जाती हो। फिर कहेगा : क्या तुम इनके अंदर लिखी किसी बात से इनकार करते हो? क्या इनको तैयार करने पर नियुक्त मेरे फ़रिश्तों ने तुमपर कोई अत्याचार किया है? वह कहेगा : नहीं, ऐ मेरे रब! फिर अल्लाह कहेगा : क्या तुम्हारे पास प्रस्तुत करने के लिए कोई कारण है? वह कहेगा : नहीं, ऐ मेरे रब! यह सुन अल्लाह कहेगा : हमारे पास तुम्हारी एक नेकी रखी है। देखो, आज तुमपर कोई अत्याचार नहीं होगा। चुनांचे एक पर्ची निकाली जाएगी, जिसमें लिखा होगा : मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं। फिर अल्लाह उससे कहेगा : अपने कर्मों को तोले जाने का दृश्य देखो। यह सुन वह कहेगा : इन रजिस्टरों के सामने इस एक पर्ची की क्या हैसियत है? लेकिन अल्लाह कहेगा : तुमपर कोई अत्याचार नहीं होगा। आपने कहा : एक पलड़े में सारे रजिस्टर रखे जाएँगे और दूसरे पलड़े में उस पर्ची को रखा जाएगा। चुनांचे रजिस्टर हल्के साबित होंगे और परर्ची भारी सिद्ध होगी, क्योंकि अल्लाह के नाम से ज़्यादा भारी कोई चीज़ नहीं है।"

85- जब अल्लाह ने जन्नत एवं जहन्नम को पैदा किया, तो जिबरील अलैहिस्सलाम* को जन्नत की ओर भेजा और फ़रमाया : जन्नत को और जन्नत के अंदर जन्नत वासियों के लिए मैंने जो कुछ तैयार किया है, उसे देख आओ। चुनांचे जिबरील ने जन्नत को देखा, वापस आए और कहा : तेरी प्रतिष्ठा की क़सम, जन्नत के बारे में जो भी सुनेगा, वह उसमें दाखिल हो ही जाएगा। चुनांचे अल्लाह ने आदेश दिया और उसे अप्रिय वस्तुओं से घेर दिया गया। इसके बाद फिर जिबरील से कहा : जन्नत की ओर जाओ और उसे तथा उसके अंदर जन्नत वासियों के लिए मैंने जो कुछ तैयार किया है, उसे देख आओ। इस बार देखा तो पाया कि उसे अप्रिय वस्तुओं से घेर दिया गया है। अतः उन्होंने कहा : तेरी प्रतिष्ठा की क़सम, मुझे इस बात का डर लग रहा है कि इसमें कोई दाख़िल ही नहीं हो सकेगा। इसके बाद अल्लाह ने उनसे कहा : जाओ और जहन्नम को तथा उसके अंदर मैंने जहन्नम वासियों के लिए जो कुछ तैयार किया है, उसे देख आओ। चुनांचे उन्होंने देखा तो पाया कि जहन्नम का एक भाग दूसरे भाग पर चढ़े जा रहा है। अतः वह लौट आए और बोले : तेरी प्रतिष्ठा की क़सम, उसमें कोई दाख़िल ही नहीं होगा। चुनांचे अल्लाह ने आदेश दिया और उसे आकांक्षाओं से घेर दिया गया। इसके बाद अल्लाह ने कहा : दोबारा जाओ और उसे देख लो। उन्होंने इस बार देखा तो पाया कि उसे आकांक्षाओं से भर दिया गया है। अतः वापस हुए और बोले : तेरी प्रतिष्ठा की क़सम, मुझे इस बात का डर है कि उसमें कोई दाखिल होने से बच ही नहीं सकेगा।"

86- एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे बीच खड़े हुए और ऐसा प्रभावशाली वक्तव्य रखा कि हमारे दिल दहल गए और आँखें बह पड़ीं। अतः किसी ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! आपने हमें एक विदाई के समय संबोधन करने वाले की तरह संबोधित किया है। अतः आप हमें कुछ वसीयत करें। तब आपने कहा : "@तुम अल्लाह से डरते रहना और अपने शासकों के आदेश सुनना तथा मानना। चाहे शासक एक हबशी ग़ुलाम ही क्यों न हो। तुम मेरे बाद बहुत ज़्यादा मतभेद देखोगे। अतः तुम मेरी सुन्नत तथा नेक और सत्य के मार्ग पर चलने वाले ख़लीफ़ागण की सुन्नत पर चलते रहना।* इसे दाढ़ों से पकड़े रहना। साथ ही तुम दीन के नाम पर सामने आने वाली नई-नई चीज़ों से भी बचे रहना। क्योंकि हर बिदअत (दीन के नाम पर सामने आने वाली नई चीज़) गुमराही है।

92- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने साथियों की एक सभा में गए और फरमाया : "तुम लोग क्यों बैठे हुए हो?" उन लोगों ने कहा : हम लोग इसलिए बैठे हैं, ताकि अल्लाह को याद करें और इस बात पर उसकी प्रशंसा करें कि उसने हमें इस्लाम का रास्ता दिखाया और इस्लाम जैसा धर्म प्रदान किया। आपने कहा : "अल्लाह की क़सम तुम लोग इसी के लिए बैठे हो?" उन लोगों ने कहा : अल्लाह की क़सम हम इसी लिए बैठे हैं। आपने फरमाया: @"मैं तुमसे क़सम इसलिए नहीं ले रहा हूँ कि तुमपर कोई आरोप लगाना चाहता हूँ। दरअसल बात यह है कि जिबरील अलैहिस्सलाम मेरे पास आए और बताया कि सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह फ़रिश्तों के निकट तुम लोगों पर गर्व कर रहा है।"

93- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दो क़ब्रों के पास से गुज़रे, तो फ़रमाया : "@इन दोनों को यातना दी जा रही है, और वह भी यातना किसी बड़े पाप के कारण नहीं दी जा रही है। दोनों में से एक पेशाब से नहीं बचता था, और दूसरा लगाई- बुझाई करता फिरता था।*" फिर आपने एक ताज़ा शाखा ली, उसे आधा-आधा फाड़ा और हर एक क़ब्र में एक-एक भाग को गाड़ दिया। सहाबा ने पूछा कि ऐ अल्लाह के रसूल! आपने ऐसा क्यों किया? तो आपने जवाब दिया : "शायद इन दोनों की यातना को उस समय तक के लिए हल्का कर दिया जाए, जब तक यह दोनों शाखाएँ सूख न जाएँ।"

96- "जब तुममें से कोई वज़ू करे, तो अपनी नाक में पानी डालकर नाक झाड़े, और जो ढेलों से इस्तिंजा (शौच या मूत्र से पवित्रता अर्जन) करे, वह बेजोड़ (विषम) संख्या प्रयोग करे*, और जब तुममें से कोई नींद से जागे, तो अपने हाथों को बरतन में डालने से पहले धो ले, क्योंकि तुममें से किसी को नहीं पता कि रात के समय उसका हाथ कहाँ-कहाँ गया है।" सहीह मुस्लिम के शब्द हैं : "जब तुममें से कोई नींद से जागे, तो अपने हाथ को बरतन में उस समय तक न डुबोए, जब तक उसे तीन बार न धो ले। क्योंकि उसे नहीं पता कि रात के समय उसका हाथ कहाँ-कहाँ गया है।"