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जिसने सूरा बक़रा की अंतिम दो आयतें रात में पढ़ लीं, वह उसके लिए काफ़ी हो जाती हैं।
जिसने सूरा बक़रा की अंतिम दो आयतें रात में पढ़ लीं, वह उसके लिए काफ़ी हो जाती हैं।
अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "जिसने सूरा बक़रा की अंतिम दो आयतें रात में पढ़ लीं, वह उसके लिए काफ़ी हो जाती हैं।"
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अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि जिसने रात में सूरा बक़रा की अंतिम दो आयतें पढ़ लीं, तो अल्लाह उसे बुराई तथा अप्रिय चीज़ों से बचाने के लिए काफ़ी हो जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि यह दोनों आयतें उसके लिए तहज्जुद की नमाज़ के बदले में काफ़ी हो जाती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि अन्य अज़कार के बदले में काफ़ी हो जाती हैं। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि रात की नमाज़ में कम से कम इन दो आयतों को पढ़ लेना ही काफ़ी है। कुछ और भी बातें कही गई हैं। हो सकता है कि ऊपर कही गई सारी बातें सही हों और सब हदीस के शब्दों के दायरे में आ जाती हों।فوائد الحديث
सूरा बक़रा की अंतिम आयतों की फ़ज़ीलत का बयान। यह आयतें इस तरह हैं : {ءَامَنَ ٱلرَّسُولُ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡهِ مِن رَّبِّهِۦ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَۚ كُلٌّ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَمَلَٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ لَا نُفَرِّقُ بَيۡنَ أَحَدٖ مِّن رُّسُلِهِۦۚ وَقَالُواْ سَمِعۡنَا وَأَطَعۡنَاۖ غُفۡرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيۡكَ ٱلۡمَصِيرُ. لا يُكَلِّفُ ٱللَّهُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَعَلَيۡهَا مَا ٱكۡتَسَبَتۡۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذۡنَآ إِن نَّسِينَآ أَوۡ أَخۡطَأۡنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تَحۡمِلۡ عَلَيۡنَآ إِصۡرٗا كَمَا حَمَلۡتَهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلۡنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِۦۖ وَٱعۡفُ عَنَّا وَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَآۚ أَنتَ مَوۡلَىٰنَا فَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَٰفِرِينَ.} (रसूल उस चीज़ पर ईमान लाए, जो उनकी तरफ़ उनके रब की ओर से उतारी गई तथा सब ईमान वाले भी। हर एक अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी पुस्तकों और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (वे कहते हैं) हम उसके रसूलों में से किसी एक के बीच अंतर नहीं करते। और उन्होंने कहा हमने सुना और हमने आज्ञापालन किया। हम तेरी क्षमा चाहते हैं ऐ हमारे रब! और तेरी ही ओर लौटकर जाना है। अल्लाह किसी प्राणी पर भार नहीं डालता परंतु उसकी क्षमता के अनुसार। उसी के लिए है जो उसने (नेकी) कमाई और उसी पर है जो उसने (पाप) कमाया। ऐ हमारे रब! हमारी पकड़ न कर यदि हम भूल जाएँ या हमसे चूक हो जाए। ऐ हमारे रब! और हमपर कोई भारी बोझ न डाल, जैसे तूने उसे उन लोगों पर डाला जो हमसे पहले थे। ऐ हमारे रब! और हमपर उसका बोझ न डाल जिसके (उठाने) की हम में शक्ति न हो। तथा हमें माफ़ कर और हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू ही हमारा स्वामी (संरक्षक) है, इसलिए काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर।)
सूरा बक़रा की अंतिम आयतों को रात में पढ़ने से इन्सान बुराई तथा शैतान से सुरक्षित रहता है।
रात सूरज डूबने के बाद से शुरू होती है और फ़ज्र प्रकट होने तक रहती है।