सुबह तथा शाम के अज़कार

सुबह तथा शाम के अज़कार

5- जिस बंदे ने प्रत्येक दिन सुब्ह तथा प्रत्येक रात शाम को तीन बार यह दुआ पढ़ी, उसे कोई चीज़ नुक़सान नहीं पहुँचा सकतीः (बिस्मिल्लाहिल लज़ी मअ़स्मिही शैउन फिलअर्ज़ि वला फिस्समाई व हुवस समीउल अलीम) अर्थात, मैं उस अल्लाह के नाम की सुरक्षा में आता हूँ, जिसके नाम के ज़िक्र के बाद कोई वस्तु नुक़सान नहीं पहुँचा सकती, वह अत्यधिक सुनने वाला तथा जानने वाला है।

7- "मैंने तेरे (पास से जाने के) बाद चार ऐसे शब्द कहे हैं कि यदि उनको तुम्हारे आज के तमाम अज़कार से तोला जाए, तो वह तुम्हारे अज़कार से अधिक भारी साबित होंगे। (वह शब्द हैंः) "सुबहानल्लाहि व बिह़म्दिहि, अददा ख़ल्क़िहि, व रिज़ा नफ़्सिहि, व ज़िनता अर्शिहि, व मिदादा कलेमातिहि।" (अल्लाह की पाकी और प्रशंसा है उसकी सृष्टि के समान, स्वयं उसकी प्रसन्नता के समान, उसके अर्श (सिंहासन) के वज़न के समान तथा उसके शब्दों की स्याही के समान।)