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ऐ अल्लाह, मैं तेरी शरण माँगता हूँ, विवशता तथा सुस्ती से, कंजूसी और बुढ़ापे से एवं क़ब्र की यातना से।
ऐ अल्लाह, मैं तेरी शरण माँगता हूँ, विवशता तथा सुस्ती से, कंजूसी और बुढ़ापे से एवं क़ब्र की यातना से।
ज़ैद बिन अरक़म -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमायाः "ऐ अल्लाह, मैं तेरी शरण माँगता हूँ, विवशता तथा सुस्ती से, कंजूसी और बुढ़ापे से एवं क़ब्र की यातना से। ऐ अल्लाह, मुझे तक़वा प्रदान करो और पवित्र कर दे। तू ही मुझे सबसे बेहतर पवित्र करने वाला है। तू ही मेरा मालिक और प्रभु है। ऐ अल्लाह, मैं तेरी शरण चाहता हूँ, ऐसे ज्ञान से जो लाभदायक न हो, ऐसे दिल से जो तेरा भय न रखता हो, ऐसी आत्मा से जो संतुष्ट न हो और ऐसी दुआ से जो क़बूल न हो।"
[सह़ीह़] [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
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मासूर दुआएँ