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1- तुमसे पहले ऐसा भी होता था कि एक व्यक्ति को पकड़ लिया जाता, फिर उसके लिए ज़मीन में गढ़ा खोदा जाता और उसे उसमें डाल दिया जाता, उसके बाद आरा लाया जाता, उसे उसके सिर पर रखा जाता और चीरकर उसके दो टुकड़े कर दिए जाते तथा उसके शरीर पर लोहे की कंघियाँ चलाई जातीं, जो उसके मांस को पार करके हड्डियों तक पहुँच जातीं, लेकिन यह सब यातनाएँ उसे अल्लाह के धर्म से रोक नहीं पातीं थीं।
2- क्या आपपर कोई ऐसा दिन बीता है, जो उहद के दिन से अधिक कठोर रहा हो? तो आपने उत्तर दिया : तुम्हारी क़ौम की ओर से मुझे इससे भी कठोर दिन का सामना करना पड़ा है। वैसे, उनकी ओर से मुझे जो सबसे कठोर दिन झेलना पड़ा, वह अक़बा का दिन था।
3- मुझे अल्लाह की राह में ऐसा डराया गया कि ऐसा किसी को नहीं डराया गया और मुझे ऐसी कष्ट दी गई जैसी तकलीफ किसी को नहीं दी गई, मेरे ऊपर निरंतर तीस दिन व रात गुज़र जाते तथा मेरे व बिलाल के पास खाने को कुछ नहीं होता जिसे एक जानदार (सजीव) खाता है सिवाय उस तनिक वस्तु के जिसे बिलाल- रज़ियल्लाहु अन्हु- अपने बगल में छुपा कर लाते थे।
4- मैंने अब्दुल्लाह बिन अम्र -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से पूछा कि मुश्रिकों का अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ कठोरतम व्यवहार क्या था? तो उन्होंने कहाः मैंने देखा कि जिस समय रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़ पढ़ रहे थे उस समय उक़बा बिन अबी मुईत अआप के पास आया तथा उसने अपनी चादर आपकी गरदन में डाली और ज़ोर से आपका गला घोंटने लगा।
5- अम्र बिन अबसा के इस्लाम लाने की घटना और नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का उन्हें नमाज़ और वज़ू सिखाने का वर्णन।