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क्या ऐसा नहीं है कि वे अल्लाह की हलाल की हुई वस्तुओं को हराम ठहराते हैं, तो तुम उन्हें हराम मान लेते हो तथा अल्लाह की…
क्या ऐसा नहीं है कि वे अल्लाह की हलाल की हुई वस्तुओं को हराम ठहराते हैं, तो तुम उन्हें हराम मान लेते हो तथा अल्लाह की हराम की हुई वस्तुओं को हलाल ठहराते हैं, तो तुम उन्हें हलाल मान लेते हो? मैंने कहाः हाँ, ऐसा होता है। आपने कहाः यही तो उनकी इबादत है।
अदी बिन हातिम (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि उन्होंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह आयत पढ़ते सुनाः "اتَّخَذُوا أَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَانَهُمْ أَرْبَابًا مِنْ دُونِ اللَّهِ وَالْمَسِيحَ ابْنَ مَرْيَمَ وَمَا أُمِرُوا إِلاَّ لِيَعْبُدُوا إِلَهًا وَاحِدًا لا إِلَهَ إِلاَّ هُوَ سُبْحَانَهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ" (अर्थात उन्होंने अपने विद्वानों तथा धर्माचारियों को अल्लाह के सिवा पूज्य बना लिया। तथा मरयम के पुत्र मसीह को भी। जबकि उन्हें जो आदेश दिया गया था, वह इसके सिवा कुछ न था कि एक अल्लाह की इबादत करें। कोई पूज्य नहीं है, परन्तु वही। वह उससे पवित्र है, जिसे उसका साझी बना रहे हैं।) तो कहाः हम उनकी इबादत तो नहीं करते। आपने फ़रमायाः "क्या ऐसा नहीं है कि वे अल्लाह की हलाल की हुई वस्तुओं को हराम ठहराते हैं, तो तुम उन्हें हराम मान लेते हो तथा अल्लाह की हराम की हुई वस्तुओं को हलाल ठहराते हैं, तो तुम उन्हें हलाल मान लेते हो?" मैंने कहाः हाँ, ऐसा होता है। आपने कहाः "यही तो उनकी इबादत है।"
الترجمة
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जब इस सम्मानित सहाबी ने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह आयत पढ़ते सुना, जिसमें यहूदियों और ईसाइयों के बारे में कहा गया है कि उन्होंने अपने धर्म गुरुओं और सन्यासियों को उपास्य बना लिया और यह अधिकार दे दिया कि अल्लाह के आदेश-निषेध के विरुद्ध अपने आदेश-निषेध जारी करें, तो उन्हें उसका अर्थ समझने में कठिनाई हुई, क्योंकि वह समझते थे कि इबादत केवल सजदा आदि ही का नाम है। अतः, रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने स्पष्ट कर दिया कि धर्म गुरुओं और पादरियों की इबादत का एक रूप यह भी है कि अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आदेश के विरुद्ध, उनकी हराम की हुई हलाल चीज़ को हराम मान लिया जाए और उनकी हलाल की हुई हराम चीज़ को हलाल मान लिया जाए।فوائد الحديث
उलेमा और दूसरी किसी सृष्टि का अल्लाह के आदेशों को बदलने में अनुसरण करना, यदि अनुसरणकर्ता को मालूम हो कि वे अल्लाह की शरीयत का स्पष्ट विरोध कर रहे हैं, महाशिर्क है।
किसी चीज को हलाल या हराम करार देने का अधिकार केवल अल्लाह को प्राप्त है।
इसमें शिर्क की बहुत सारी किस्मों में से एक किस्म यानी अनुसरण में शिर्क का बयान हुआ है।
इससे पता चलता है कि अज्ञान को ज्ञान देना, धर्म सम्मत है।
यह भी मालूम होता है कि इबादत के मायने बहुत ही व्यापक हैं। इसमें हर वह निहित एवं विदित कथन तथा काम शामिल है, जिसे अल्लाह पसंद करता है और जिससे वह खुश होता है।
इसमें पादरियों और सन्यासियों की गुमराही का बयान हुआ है।
यहूदियों और ईसाइयों के शिर्क को साबित किया गया है।
बताया गया है कि समस्त रसूलों का मूल धर्म एक ही है और वह है एकेश्वरवाद।
रचयिता की अवज्ञा करते हुए, किसी सृष्टि की आज्ञा का पालन करना दरअसल उसकी इबादत करना है।
बताया गया है कि यदि किसी धर्म संबंधी बात का भाव समझ में न आए, तो ज्ञानियों से पूछ कर मालूम कर लेना अनिवार्य है।
इससे सहाबियों का ज्ञान से असीम प्रेम मालूम होता है।
التصنيفات
शिर्क (बहुदेववाद)