तीन प्रकार के लोगों से क़लम उठा ली गई है; सोए हुए व्यक्ति से, जब तक जाग न जाए; बच्चे से, जब तक वयस्क न हो जाए और पागल से,…

तीन प्रकार के लोगों से क़लम उठा ली गई है; सोए हुए व्यक्ति से, जब तक जाग न जाए; बच्चे से, जब तक वयस्क न हो जाए और पागल से, जब तक उसकी चेतना एवं विवेक लौट न आए।

अली रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "तीन प्रकार के लोगों से क़लम उठा ली गई है; सोए हुए व्यक्ति से, जब तक जाग न जाए; बच्चे से, जब तक वयस्क न हो जाए और पागल से, जब तक उसकी चेतना एवं विवेक लौट न आए।"

[सह़ीह़]

الشرح

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि तीन व्यक्तियों को छोड़कर सारे लोग शरई आदेशों एवं निषेधों का पालन करने के पाबंद हैं। यह तीन व्यक्ति इस प्रकार हैं : छोटा बच्चा, बड़ा और वयस्क होने तक। ऐसा पागल व्यक्ति जो अपनी अक़्ल खो चुका हो, जब तक उसकी अक़्ल वापस न आए। सोया हुआ इन्सान जब तक जाग न जाए। ये तीनों लोग शरई आदेशों एवं निषेधों का पालन करने के पाबंद नहीं हैं। इनसे कोई ग़लत काम हो जाए, तो इनके खाते में गुनाह नहीं लिखा जाता। अलबत्ता, छोटे बच्चे के खाते में नेकी लिखी जाती है। लेकिन पागल और सोए हुए इन्सान के खाते में वह भी नहीं लिखी जाती। क्योंकि शऊर न होने के कारण दोनों इस योग्य ही नहीं होते कि उनकी इबादत सही हो।

فوائد الحديث

इन्सान अपनी योग्य से या तो नींद के कारण वंचित होता है कि इस अवस्था में उसके पास अपनी ज़िम्मेवारियों को अदा करने के लिए चेतना नहीं होती, या आयु कम होने के कारण कि इस हालत में उसके पास योग्यता नहीं रहती, पागलपन के कारण कि इस अवस्था में उसकी अक़्ल काम करना बंद कर देती है, या फिर इसके समान अन्य चीज़ों जैसे नशा आदि के कारण। अतः जिस व्यक्ति के अंदर भले-बुरे के बीच अंतर करने या सही कल्पना करने की शक्ति मौजूद न हो, उसके अंदर इन तीन कारणों में से किसी एक कारण की वजह से योग्यता समाप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति से अगर उच्च एवं महान अल्लाह के अधिकार क्षेत्र से संबंधित कोई कमी-बेशी हो जाए, तो अल्लाह अपने न्याय एवं कृपा से काम लेते हुए उसे क्षमा कर देता है।

इन तीनों के खाते में गुनाह लिखे न जाने का मतलब यह नहीं है कि उनपर कुछ सांसारिक प्रवाधान साबित नहीं होंगे। मिसाल के तौर पर कोई पागल व्यक्ति अगर किसी का क़त्ल कर दे, तो उसे क़िसास के तौर पर क़त्ल नहीं किया जाएगा और कफ़्फ़ारा नहीं देना होगा, लेकिन उसके परिवार को दियत देनी होगी।

वयस्क होने की तीन निशानियाँ हैं : स्वप्नदोष आदि द्वारा वीर्य स्खलन, जघन बाल उग जाना, पंद्रह वर्ष पूरे हो जाना। स्त्री के अंदर एक चौथी निशानी भी पाई जाती है। वह है, माहवारी आना।

सुबकी कहते हैं : हदीस में आए हुए 'صبی' शब्द का अर्थ है बच्चा। किसी और ने कहा है : बच्चा जब माँ के पेट में होता है, तो उसे अरबी में 'جنین' कहा जाता है। जब पैदा हो जाए, तो 'صبی' कहलाता है। दूध पीने का समय गुज़रने के बाद से सात साल तक 'غلام' कहलाता है। उसके बाद दस साल तक 'یافع' कहलाता है। फिर पंद्रह साल तक 'حزور' कहलाता है। लेकिन एक बात निश्चित है कि उसे इन तमाम परिस्थितियों में 'صبی' कहा जाएगा। यह बात सुयूती ने कही है।

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