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1- जो किसी मोमिन को जान-बूझकर क़त्ल करेगा, उसे मृतक के घर वालों के हवाले किया जाएगा। वह चाहें तो उसे क़त्ल कर दें और चाहें तो उससे दियत लें, जो इस प्रकार है : 30 ऐसी ऊँटनियाँ जो तीन साल पूरे करके चौथे साल में प्रवेश कर चुकी हों, 30 ऐसी ऊँटनियाँ जो चार साल पूरे करके पाँचवें साल में प्रवेश कर चुकी हों और 40 गाभिन ऊँटनियाँ। साथ ही दोनों पक्ष के लोग जिसपर सुलह कर लें, वह मृतक के परिजनों के लिए है।
2- उमर बिन खत्ताब- रज़ियल्लाहु अन्हु- ने लोगों से, किसी अत्याचार के नतीजे में गर्भपात के बारे में परामर्श किया
3- हुज़ैल की दो महीलाऐं आपस में लड़ पड़ीं , तो एक ने दुसरी को पत्थर से मारा , जिस कारण वह मर गई और उसके पेट में बच्चा भी मर गया।
4- कोई अपने भाई को ऐसे दांत से काटता है, जैसे साँड़ काटता है। तेरे लिए कोई दियत नहीं है।
5- जो क़त्ल किया गया हो, परन्तु उसके क़ातिल का पता न हो, या दो समुदाय के मध्य धनुष-बाण चले हों अथवा पत्थर बाजी हुई हो, या कोड़े चले हों और किसी का वध हो जाए, परन्तु वध करने वाले का पता न चले, तो उसकी दियत भूलवश वध करने की दियत होगी। लेकिन जिसने जान-बूझकर किसी का वध किया, तो उसे स्वयं दियत देनी पड़ेगी। याद रहे कि जो क़ातिल को दियत देने से रोकने रका कारण बना, उसपर अल्लाह की, फ़रिश्तों की तथा तमाम लोगों की लानत है।
6- याद रहे, रक्त एवं धन से संबंधित जाहिलियत के समय की वह सारी बातें जो गौरवपूर्ण तरीक़े से बयान की जाती हैं और जिनके दावे किए जाते हैं, मेरे पाँव तले हैं, सिवाय हाजियों को पानी पिलाने एवं काबा की सेवा के कार्य के।
7- ये तथा ये समान हैं।
8- मुआहिद (ऐसा ग़ैरमुस्लिम जिसे सुरक्षा का वचन दिया गया हो) की दियत एक आजाद व्यक्ति की दियत की आधी है।
9- शिब्ह-ए-अमद (वह क़त्ल, जिसे जानबूझ-कर किए गए क़त्ल के समान माना गया है) की दियत क़त्ल-ए-अमद (जान-बूझकर किए गए क़त्ल) की तरह सख़्त है। लेकिन इसमें क़ातिल को क़त्ल नहीं किया जाएगा। उसकी सूरत यह है कि शैतान लोगों को इस तरह बहकाए कि बिना सोचे-समझे रक्तपात हो जाए, जबकि न आपसी द्वेष रहा हो और न हथियार का प्रयोग हुआ हो।