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तुममें से जो कोई नमाज़ पढ़ने के लिए आए तो उसे चाहिए कि वह वैसी ही अवस्था में हो जाए जैसा इमाम कर रहा है।
तुममें से जो कोई नमाज़ पढ़ने के लिए आए तो उसे चाहिए कि वह वैसी ही अवस्था में हो जाए जैसा इमाम कर रहा है।
अली बिन अबू तालिब व मुआज़ बिन जबल -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से मरफूअन वर्णति है : “तुममें से जो कोई नमाज़ पढ़ने के लिए आए तो उसे चाहिए कि वह वैसी ही अवस्था में हो जाए जैसा इमाम कर रहा है।”
[सह़ीह़] [इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।]
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जब तुममें से कोई नमाज़ पढ़ने पहुँचे और इमान क़याम, रुकू, सजदा या बैठक आदि किसी हालत में हो, तो इमाम को क़याम अथवा रुकू आदि जिस अवस्था में पाए, उसी में उसके साथ हो जाए और उसके खड़े होने की प्रतीक्षा न करे, जैसा कि कुछ लोग करते हैं।فوائد الحديث
इमाम के साथ बाद में नमाज़ में मिलने वाले को आदेश कि वह इमाम को जिस अवस्था में पाए उसी में उसके साथ हो जाए। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वह रुकू में है या सजदे में या फिर बैठक में।
बाद में मिलने वाला इमाम को जिस रकात में पाए, वह रकात उसे उसका रुकू पाने से मिल जाती है। यह बात अन्य हदीसों से प्रमाणित है।