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यदि मुसलमानों पर -या : मेरी उम्मत पर- कठिन न होता, तो मैं उन्हें आदेश देता कि प्रत्येक नमाज़ के समय मिसवाक कर लिया…
यदि मुसलमानों पर -या : मेरी उम्मत पर- कठिन न होता, तो मैं उन्हें आदेश देता कि प्रत्येक नमाज़ के समय मिसवाक कर लिया करें।
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है : "यदि मुसलमानों पर -या : मेरी उम्मत पर- कठिन न होता, तो मैं उन्हें आदेश देता कि प्रत्येक नमाज़ के समय मिसवाक कर लिया करें।"
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अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया कि अगर आपको अपनी उम्मत के मशक़्क़त में पड़ने का भय न होता, तो उनपर हर नमाज़ के समय मिस्वाक को अनिवार्य कर देते।فوائد الحديث
अपनी उम्मत पर अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दया और इस बात का डर कि कहीं उन्हें कठिनाई का सामना न करना पड़े।
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आदेश मूलतः अनिवार्यता को बतलाता है, जब तक कि उसके नफ़ल होने का कोई प्रमाण न आ जाए।
हर नमाज़ के समय मिस्वाक करने का मुसतहब होना और उसकी फ़ज़ीलत।
इब्न-ए-दक़ीक़ अल-ईद कहते हैं : नमाज़ के समय मिस्वाक को मुसतहब क़रार दिए जाने के पीछे हिकमत यह है कि नमाज़ दरअसल अल्लाह की निकटता प्राप्त करने की अवस्था है। इसलिए इस महत्वूर्ण इबादत के सम्मान में इन्सान को पूरी साफ़-सफ़ाई के साथ उपस्थित होना चाहिए।
इस हदीस की व्यापकता में रोज़ा रखे हुए व्यक्ति का मिस्वाक करना भी शामिल है, सूरज ढलने के बाद ही क्यों न हो। जैसे ज़ुहर तथा अस्र की नमाज़ के लिए मिस्वाक करना।