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1- उन लोगों के समीप अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से अधिक प्रिय कोई भी नहीं था, (इसके बावजूद) वह लोग आप को देख कर खड़े नहीं होते थे क्योंकि वह जानते थे कि अल्लाह के रसूल (- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम-) इस से घृणा करते हैं।
2- मदीने की दासियों में से कोई दासी नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का हाथ पकड़ लेती और आपको जहाँ चाहती, ले जाती।
3- यदि मुझे बकरी के पाये तथा बाँह का गोश्त खाने के लिए बुलाया जाए तो स्वीकार कर लूँगा
4- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अपनी हज यात्रा एक पुराने ज़ीन तथा मामूली चादर पर (आरंभ) की जिसका मुल्य चार दिरहम के बराबर था या उस से भी कम था, फिर आप ने कहाः ऐ अल्लाह, ऐसा हज विशुद्ध रूप से केवल तेरे लिए है जिस में ढ़ोंग व पाखंड का कोई अंश नहीं है।
5- निश्चय अल्लाह ने मुझे एक शरीफ़ बंदा बनाया है। मुझे अभिमानी और विद्वेषी नहीं बनाया है।
6- नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- मेरी देखभाल के लिए तशरीफ लाये । न ख़च्चर पर सवार थे, और न घोड़े पर (बल्कि पैदल तशरीफ लाये) ।
7- यूसुफ बिन अब्दुल्लाह बिन सलाम- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- का कथन कि अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मेरा नाम यूसुफ रखा तथा मुझे अपनी गोद में बिठाया।