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अल्लाह की क़सम, (यदि अल्लाह ने चाहा) मैं जब भी किसी बात की क़सम खाऊँगा, फिर दूसरी बात को क़सम पर कायम रहने से बेहतर…
अल्लाह की क़सम, (यदि अल्लाह ने चाहा) मैं जब भी किसी बात की क़सम खाऊँगा, फिर दूसरी बात को क़सम पर कायम रहने से बेहतर देखूँगा, तो बेहतर पर अमल करूँगा और क़सम का कफ़्फ़ारा अदा कर दूँगा।
अबू मूसा अशअरी (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः अल्लाह की क़सम, (यदि अल्लाह ने चाहा) मैं जब भी किसी बात की क़सम खाऊँगा, फिर दूसरी बात को क़सम पर कायम रहने से बेहतर देखूँगा, तो बेहतर पर अमल करूँगा और क़सम का कफ़्फ़ारा अदा कर दूँगा।
[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
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यहाँ नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने स्वयं अपने बारे में बताया है कि यदि आप किसी काम के करने अथवा न करने की क़सम खाते और फिर महसूस करते कि क़सम को जारी न रहना ही उत्तम है, तो क़सम तोड़कर जो बेहतर है, वह करलेते और क़सम का कफ़्फ़ारा अदा कर देते। आप वही करते या छोड़ते थे जिसके करने या छोड़ने में भलाई हो।التصنيفات
क़समें और मन्नतें