إعدادات العرض
कंजूस वह व्यक्ति है, जिसके सामने मेरा नाम लिया जाए और वह मुझपर दरूद न भेजे।
कंजूस वह व्यक्ति है, जिसके सामने मेरा नाम लिया जाए और वह मुझपर दरूद न भेजे।
हुसैन बिन अली बिन अबू तालिब रज़ियल्लाहु अनहुमा का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है : "कंजूस वह व्यक्ति है, जिसके सामने मेरा नाम लिया जाए और वह मुझपर दरूद न भेजे।"
الترجمة
العربية বাংলা Bosanski English Español فارسی Français Bahasa Indonesia Tagalog Türkçe اردو 中文 ئۇيغۇرچە Hausa Kurdî Português සිංහල Русский Nederlands অসমীয়া Tiếng Việt Kiswahili ગુજરાતી پښتو Română മലയാളം Deutsch नेपाली Кыргызча ქართული Moore Magyar తెలుగు Svenska ಕನ್ನಡ Українська Македонски Kinyarwanda Oromoo ไทย Српски मराठी ਪੰਜਾਬੀ دری አማርኛ Malagasy Wolof ភាសាខ្មែរ Lietuviųالشرح
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस बात से सावधान किया है कि किसी के सामने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का नाम, कुनयत या ज़िक्र आए और वह आपपर दरूद न भेजे। आपने कहा : वह व्यक्ति पूर्ण रूप से कंजूस है, जिसके सामने मेरा ज़िक्र हो और वह मुझपर दरूद न भेजे। इसके कई कारण हैं : 1- उसने एक ऐसी चीज़ खर्च करने में कंजूसी दिखाई, जिसमें ज़रा भी घाटा नहीं है। उसमें न माल खर्च होता है और न मेहनत लगती है। 2- उसने खुद को अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दरूद भेजने के प्रतिफल में वंचित कर लिया। उसने आपपर दरूद न भेजकर एक ऐसे हक़ की अदायगी में कंजूसी दिखाई, जो इस संबंध में आए हुए आदेश के अनुपालन और प्रतिफल की प्राप्ति के लिए उसे अदा करना था। 3- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दरूद भेजना हमारे ऊपर आपके अधिकारों में से एक अधिकार की अदायगी है। क्योंकि आपने हमें शिक्षा दी, हमारा मार्गदर्शन किया, हमें अल्लाह की ओर बुलाया और हमारे लिए वह्य (प्रकाशना) और एक भव्य शरीयत ले आए। अतः अल्लाह के पश्चात् आप ही हमारे मार्गदर्शन का सबब हैं। अतः जो आपपर दरूद नहीं भेजता, वह आपके प्रति कंजूसी कर रहा है और अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का एक छोटा सा हक अदा करने में भी कंजूसी कर रहा है।فوائد الحديث
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दरूद न भेजना कंजूसी की निशानी है।
वैसे तो अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दरूद भेजना हर समय नेकी का एक उत्कृष्ट कार्य है, लेकिन जब आपका उल्लेख हो, तो इसका महत्व बढ़ जाता है।
नववी कहते हैं : अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दरूद भेजते समय दरूद व सलाम दोनों भेजे। किसी एक पर बस न करे। न केवल (सल्लल्लाहु अलैहि) कहे और न केवल (अलैहिस्सलाम) कहे।
अबुल आलिया अल्लाह के कथन "निःसंदेह अल्लाह एवं उसके फ़रिश्ते नबी पर सलात (दरूद) भेजते हैं।" के बारे में कहते हैं : 'सलात' शब्द जब अल्लाह की ओर से नबी के हक़ में इस्तेमाल हो, तो उसका अर्थ है प्रशंसा करना तथा जब फ़रिश्तों एवं इन्सानों की ओर से इस्तेमाल हो, तो उसका अर्थ होता है दुआ करना।
हलीमी कहते हैं : इस तरह "اللهم صلّ على محمد" का अर्थ हुआ : ऐ अल्लाह! मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को दुनिया में महानता प्रदान कर, आपके ज़िक्र को ऊँचा करके, आपके दीन को प्रभुत्व प्रदान करके और आपकी शरीयत को नित्यता प्रदान करके। आख़िरत में भी महानता प्रदान कर, उम्मत के बारे में आपकी सिफ़ारिश को क़बूल फ़रमाकर, बड़ा प्रतिफल प्रदान करके, बाद के तमाम लोगों पर आपकी श्रेष्ठता व्यक्त करके और उपस्थित निकटवर्तियों पर आपको तरजीह देकर।
التصنيفات
मुसीबत के समय के अज़कार