''क्या मैं तुम्हें ऐसी बातें न बताऊँ, जिनके ज़रिए अल्लाह गुनाहों को मिटा देता है और दर्जे ऊँचे कर देता है?

''क्या मैं तुम्हें ऐसी बातें न बताऊँ, जिनके ज़रिए अल्लाह गुनाहों को मिटा देता है और दर्जे ऊँचे कर देता है?

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : ''क्या मैं तुम्हें ऐसी बातें न बताऊँ, जिनके ज़रिए अल्लाह गुनाहों को मिटा देता है और दर्जे ऊँचे कर देता है?" सहाबा ने कहा : अवश्य ऐ अल्लाह के रसूल! फ़रमाया : "परेशानियों के बावजूद अच्छी तरह वज़ू करना, इन्सान का अधिक से अधिक मस्जिद जाना और नमाज़ के बाद अगली नमाज़ की प्रतीक्षा करना। यही पहरेदारी है।''

[सह़ीह़] [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

الشرح

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा से पूछा कि क्या वह चाहते हैं कि आप उनको कुछ ऐसे कार्यों के बारे में बताएँ, जो गुनाहों की क्षमा, उन्हें इन्सान के कर्म लिखने वाले फ़रिश्तों के रजिस्टर से मिटा दिए जाने और जन्नत में ऊँचे स्थान के सबब बनते हों। सहाबा ने कहा : अवश्य ही बताएँ। आपने फ़रमाया : 1- परेशानी, जैसे ठंडी, पानी की कमी शारीरिक कष्ट एवं पानी गर्म होने के बावजूद पूरे तौर पर और अचछी तरह वज़ू करना। 2- मस्जिदों की ओर ज़्यादा क़दम चलना। इसकी दो सूरतें हो सकती हैं। मस्जिद से घर दूर हो या मस्जिद आना-जाना ज़्यादा हो। हदीस में आए हुए शब्द "अल-ख़ुता" के मायने दो क़दमों के बीच की दूरी के हैं। 3- नमाज़ के समय की प्रतीक्षा करना, उसमें दिल का अटका रहना, उसकी तैयारी करना और जमात के साथ नमाज़ पढ़ने की प्रतीक्षा में मस्जिद के अंदर बैठे रहना। एक नमाज़ पढ़ लेने के बाद मस्जिद में बैठकर दूसरी नमाज़ की प्रतीक्षा करना। उसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया कि दरअसल यही कार्य हक़ीक़ी मुराबता यानी दुश्मन से रक्षा के लिए सरहद की पहरेदारी है। क्योंकि यह अंतरात्मा की ओर आने वाले शैतानी रास्तों को बंद करते हैं, अनुचित आकांक्षाओं को दबाते हैं और हृदय को शैतान द्वारा डाले गए बुरे ख़्यालात को ग्रहण करने से रोकते हैं। इस प्रकार, अल्लाह की सेना को शैतान की सेना पर विजय प्राप्त होती है।

فوائد الحديث

मस्जिद जाकर जमात के साथ पाबंदी से नमाज़ पढ़ने, नमाज़ों की पाबंदी करने और ग़फ़लत न बरतने की फ़ज़ीलत व अहमियत।

अपनी बात रखने और सहाबा को प्रेरित करने का अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अद्भुत तरीक़ा कि बात रखते समय सबसे पहले एक बहुत बड़े सवाब के बारे में पूछा। दरअसल शिक्षा देने की यह एक बहुत ही प्रभावी पद्धति है।

किसी मसले को प्रश्न एवं उत्तर के रूप में प्रस्तुत करने का लाभ यह है कि किसी बात को पहले अस्पष्ट तौर पर रखने और उसके बाद उसे स्पष्ट करने से बात दिल में बैठ जाती है।

नववी कहते हैं : "यही रबात है" का मतलब यह है कि यही वह रबात है, जिसकी प्रेरणा दी गई है। रबात के असल मायने किसी चीज़ पर रोके रखने के हैं। उल्लिखित प्रकार के इन्सान ने एक तरह खुद को नेकी और बंदगी पर रोक लिया। इस बात की भी गुंजाइश है कि मुराद सबसे उत्तम रबात लिया जाए। कहा जाता है : जिहाद नाम है आत्मा से जिहाद करने का। यानी सबसे उत्तम जिहाद आत्मा से जिहाद करना है। इस बात की भी संभावना है कि यहाँ मुराद उपलब्ध रबात हो। यानी यह भी एक प्रकार का रबात है।

यहाँ रबात शब्द का प्रयोग एक से अधिक बार किया गया है और उसपर निश्चितता को इंगित करने वाला "अल" लगा हुआ है, ताकि इन कार्यों के महत्व को सामने लाया जा सके।

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सुकर्मों की फ़ज़ीलतें