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“यह दो नमाज़ें मुनाफिकों के लिए सर्वाधिक कठिन हैं और यदि वह जान लेते कि इनमें कितना सवाब है, तो वे अवश्य आते, चाहे…
“यह दो नमाज़ें मुनाफिकों के लिए सर्वाधिक कठिन हैं और यदि वह जान लेते कि इनमें कितना सवाब है, तो वे अवश्य आते, चाहे (हाथ एवं) घुटनों के बल घिसटते हुए ही क्यों न हो।
उबय बिन काब -रज़ियल्लाहु अन्हु- का वर्णन है, वह कहते हैं : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन हमें फ़ज्र की नमाज़ पढ़ाई, फिर पूछा : “क्या अमुक व्यक्ति उपस्थित है?” लोगों ने कहा : नहीं। आपने पुनः पूछा : “क्या अमुक व्यक्ति उपस्थित है?” लोगों ने कहा : नहीं। आपने फ़रमाया : “यह दो नमाज़ें मुनाफिकों के लिए सर्वाधिक कठिन हैं और यदि वह जान लेते कि इनमें कितना सवाब है, तो वे अवश्य आते, चाहे (हाथ एवं) घुटनों के बल घिसटते हुए ही क्यों न हो। प्रथम सफ (पंक्ति) फरिश्तों की सफ के समान है। यदि तुम इसकी फज़ीलत (महत्व) जान लेते, तो इसके लिए जल्दी करते। एक आदमी की नमाज़ दूसरे आदमी के साथ अकेले नमाज़ पढ़ने से बेहतर है और दो आदमियों के साथ नमाज़ पढ़ना एक आदमी के साथ नमाज़ पढ़ने से बेहतर है। लोग (नमाज़ में) जितने अधिक होंगे, नमाज़ अल्लाह तआला के समीप उतनी अधिक प्रिय होगी।”
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अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन फ़ज्र की नमाज़ पढ़ी और उसके बाद पूछा कि क्या हमारी इस नमाज़ में अमुक व्यक्ति है? सहाबा ने उत्तर दिया कि नहीं। फिर आपने दूसरे व्यक्ति के बारे में पूछा : क्या अमुक व्यक्ति मौजूद है? सहाबा ने इस बार भी नहीं में जवाब दिया। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : निस्संदेह फ़ज्र एवं इशा की नमाज़ें मुनाफ़िक़ों पर सबसे भारी हैं, क्योंकि इन दोनों समयों में सुस्ती हावी रहती है दिखावे की संभावना कम रहती है कि अंधेरे के कारण कोई देख नहीं सकता। ऐ मोमिनो! अगर तुम जान लो कि सुबह तथा इशा की नमाज़ में कितना अतिरिक्त सवाब है, (क्योंकि सवाब मशक़्क़ ते अनुरूप मिला करता है) तो तुम इन दोनों नमाज़ों में ज़रूर पहुँचोगे। चाहे घुटनों और हाथों के बल चलकर ही क्यों न पहुँचना पड़े। निश्चय ही पहली सफ़ उसमें खड़े लोगों के इमाम से क़रीब होने के मामले में फ़रिश्तों की सफ़ के समान है अल्लाह से निकट होने के मामले में। अगर ईमान वाले पहली सफ़ की फ़ज़ीलत से अवगत हो जाएँ, तो उसमें जगह पाने के लिए प्रतिस्पर्धा करने लगेंगे। एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ नमाज़ पढ़ना अकेले नमाज़ पढ़ने की तुलना में अधिक सवाब रखता है और दो व्यक्ति के साथ नमाज़ पढ़ना एक व्यक्ति के साथ नमाज़ पढ़ने से अधिक सवाब रखता है। जिस नमाज़ में नमाज़ियों की संख्या अधिक हो, वह अल्लाह के निकट अधिक प्रिय एवं उत्तम है।فوائد الحديث
मस्जिद के इमाम का मुक़तदियों के हालात का जायज़ा लेना और जो नमाज़ी ग़ायब हों, उनके बारे में पूछना एक शरीयत सम्मत कार्य है।
पाबंदी से जमात के साथ नमाज़ पढ़ना, खास तौर से इशा और फ़ज्र की नमाज़ पाबंदी से जमात के साथ पढ़ना इमान की निशानी है।
इस हदीस से इशा और फ़ज्र की नमाज़ के बड़े प्रतिफल का पता चलता है, क्योंकि इन नमाज़ों में उपस्थित होने के लिए अपने नफ़्स से लड़ना पड़ता है और अल्लाह की इबादत पर अडिग रहना पड़ता है। यही कारण है कि इन दोनों नमाज़ों में अन्य नमाज़ों की तुलना में अधिक सवाब मिलता है।
जमात की नमाज़ दो या इससे अधिक लोगों ने सही हो जाती है।
पहली सफ़ की फ़ज़ीलत का बयान और उसमें शामिल लोगों होने की प्रेरणा।
बड़ी जमात की फ़ज़ीलत। लोग जितने ज़्यादा होंगे, सवाब उतना ही ज़्यादा मिलेगा।
हालात और शरई परिस्थितियों के मद्देनज़र अच्छे कर्मों की फ़ज़ीलत में भी अंतर होता है।