إعدادات العرض
मैंने उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अनहु- के साथ ईद की नमाज़ अदा की। उन्होंने फ़रमाया कि यह दो दिन ऐसे हैं, जिनमें…
मैंने उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अनहु- के साथ ईद की नमाज़ अदा की। उन्होंने फ़रमाया कि यह दो दिन ऐसे हैं, जिनमें रोज़ा रखने से अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मना किया है। एक (रमज़ान के) रोज़ों के बाद इफ़तार (ईद अल-फ़ित्र) का दिन, और दूसरा वह दिन, जिसमें तुम अपनी क़ुरबानी का मांस खाते हो (यानी ईद अल-अज़हा का दिन)।
इब्न-ए-अज़हर के आज़ाद किए हुए ग़ुलाम अबू उबैद से रिवायत है, वह कहते हैं : मैंने उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अनहु- के साथ ईद की नमाज़ अदा की। उन्होंने फ़रमाया कि यह दो दिन ऐसे हैं, जिनमें रोज़ा रखने से अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मना किया है। एक (रमज़ान के) रोज़ों के बाद इफ़तार (ईद अल-फ़ित्र) का दिन, और दूसरा वह दिन, जिसमें तुम अपनी क़ुरबानी का मांस खाते हो (यानी ईद अल-अज़हा का दिन)।
الترجمة
العربية বাংলা Bosanski English Español فارسی Français Bahasa Indonesia Русский Tagalog اردو 中文 ئۇيغۇرچە Hausa Português Kurdî සිංහල Kiswahili Tiếng Việt অসমীয়া ગુજરાતી Nederlands മലയാളം Română Magyar ქართული Moore ಕನ್ನಡ Svenska Македонски ไทย Українська తెలుగు मराठी ਪੰਜਾਬੀ دری Türkçe አማርኛ Malagasy پښتو ភាសាខ្មែរ Wolof नेपालीالشرح
अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने ईद अल-फ़ित्र के दिन एवं ईद अल-अज़हा के दिन रोज़ा रखने से मना किया है। ईद अल-फ़ित्र के दिन इसलिए कि उस दिन महीना भर रोज़ा रखने के बाद रोज़ा तोड़ने का दिन है और ईद अल-अज़हा के दिन इसलिए कि वह क़ुर्बानी का मांस खाने का दिन है।فوائد الحديث
ईद अल-फ़ित्र के दिन, ईद अल-अज़हा के दिन और तशरीक़ के दिनों में रोज़ा रखना हराम है। तशरीक़ के दिनों में इसलिए कि ये ईद अल-अज़हा के दिन के अधीन हैं। हाँ, यदि किसी (हज्ज करने वाले) के पास हद्य (क़ुर्बानी का जानवर) न हो, तो वह तशरीक़ के दिनों में रोज़ा रख सकता है।
इब्न-ए-हजर कहते हैं : कहा गया है : इन दो दिनों के उल्लेख का उद्देश्य दरअसल इन दोनों दिनों में रोज़ा रखने की मनाही के कारण की ओर इशारा करना है। पहले दिन रोज़ा रखने की मनाही का कारण यह है कि रमज़ान का रोज़ा ख़त्म हो चुका है, जबकि दूसरे दिन रोज़ा रखने की मनाही का कारण क़ुर्बानी करना है, जो एक इबादत है और जिसका मांस खाया जाता है।
मुसतहब यह है कि ख़तीब अपने ख़ुतबे में समय एवं परिस्थितियों के अनुसार शरई आदेश एवं निर्देश बयान करे।
क़ुर्बानी का मांस खाना एक शरीयत सम्मत कार्य है।
التصنيفات
रोज़ेदार के लिए हराम कार्य