जुमे के दिन हर व्यस्क व्यक्ति पर स्नान करना अनिवार्य है तथा यह कि वह दातुन करे और मिल सके तो ख़ुशबू भी लगाए।

जुमे के दिन हर व्यस्क व्यक्ति पर स्नान करना अनिवार्य है तथा यह कि वह दातुन करे और मिल सके तो ख़ुशबू भी लगाए।

अम्र बिन सुलैम अंसारी कहते हैं : मैं गवाही देता हूँ कि अबू सईद ने कहा है और उन्होंने गवाही दी है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है : "जुमे के दिन हर व्यस्क व्यक्ति पर स्नान करना अनिवार्य है तथा यह कि वह दातुन करे और मिल सके तो ख़ुशबू भी लगाए।"

[सह़ीह़] [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

الشرح

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया है कि जुमे के दिन का स्नान हर वयस्क मुसलमान पुरुष पर, जिसपर जुमे की नमाज़ फ़र्ज़ है, अपने अंदर वाजिब की तरह ताकीद रखता है। उस दिन मिसवाक आदि द्वारा दाँत साफ़ कर लेना चाहिए। ख़ुशबू लाग लेनी चाहिए।

فوائد الحديث

जुमा के दिन हर वयस्क मुसलमान पुरुष पर स्नान करना ताकीद के साथ मुसतहब है।

साफ़-सफ़ाई एवं दुर्गंध को दूर हटाना शरीयत की नज़र में वांछित है।

जुमे के दिन का सम्मान करना चाहिए तथा उसके लिए तैयारी करनी चाहिए।

जुमे के लिए मिस्वाक करना ताकीद के साथ मुस्तहब है।

जुमे की नमाज़ के लिए जाने से पहले खुशबू लगा लेना मुसतहब है।

औरत जब नमाज़ या किसी दूसरे काम के लिए घर से निकले, तो उसका खुशबू लगाना जायज़ नहीं है। क्योंकि सुन्नत इसके हराम होने को प्रमाणित करती है।

इस हदीस में आए हुए शब्द "المحتلم" से मुराद वयस्क है और वयस्कता की कुछ निशानियाँ हुआ करती हैं। उनमें से तीन निशानियाँ पुरुष एवं महिला दोनों में पाई जाती हैं : 1- पंद्रह वर्ष पूरे हो जाना। 2- शर्मगाह के आसपास खुरदरे बालों का उग आना। 3- स्वप्नदोष के कारण या काम उत्तेजना के साथ वीर्य निकलने लगना। जबकि चौथी निशानी विशेष रूप से औरतों के अंदर पाई जाती है। यानी माहवारी का ख़ून आना। औरत को माहवारी आने लगे, तो वह वयस्क है।

التصنيفات

जुमे की नमाज़ के अहकाम