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ऐ लोगो! अल्लाह के सामने तौबा करो, क्योंकि खुद मैं दिन में सौ बार तौबा करता हूँ।
ऐ लोगो! अल्लाह के सामने तौबा करो, क्योंकि खुद मैं दिन में सौ बार तौबा करता हूँ।
अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के एक सहाबी अग़र्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : "ऐ लोगो! अल्लाह के सामने तौबा करो, क्योंकि खुद मैं दिन में सौ बार तौबा करता हूँ।"
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अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों को अधिक से अधिक तौबा एवं क्षमा याचना करने का आदेश दे रहे हैं और ख़ुद अपने बारे में बता रहे हैं कि आप दिन में सौ बार से अधिक तौबा एवं क्षमा याचना करते हैं। जबकि आपके अगले एवं पिछले तमाम गुनाह माफ़ थे। यह दरअसल अल्लाह के सामने में अपनी बंदगी एवं हीनता के इज़हार का पराकाष्ठा है।فوائد الحديث
प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे उसके ईमान का स्तर कुछ भी हो, सर्वशक्तिमान अल्लाह की ओर लौटने और तौबा के माध्यम से स्वयं को परिपूर्ण बनाने की आवश्यकता होती है। प्रत्येक व्यक्ति से अल्लाह के अधिकारों की अदायगी में कोताही हो ही जाया करती है। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है : "ऐ मोमिनो! तुम सब अल्लाह के सामने तौबा करो।"
तौबा का यह आदेश आम है। तौबा चाहे हराम कामों और गुनाह करने की हो या अनिवार्य कार्य करने में कोताही की।
तौबा के क़बूल होने के लिए दिल में अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति की नीयत करना शर्त है। जिसने अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति के अतिरिक्त किसी और उद्देश्य से गुनाह छोड़ा, वह तौबा करने वाला शुमार नहीं होगा।
नववी कहते हैं : तौबा की तीन शर्तें हैं : 1- गुनाह को छोड़ देना। 2- गुनाह में संलिप्त होने पर शर्मिंदा होना। 3- इस बात की प्रतिज्ञा कर लेना कि दोबारा वह गुनाह नहीं करेगा। उपर्युक्त तीन शर्तें उस समय हैं, जब गुनाह का संबंध अल्लाह के किसी अधिकार के हनन से हो। अगर गुनाह का संबंध बंदों के अधिकारों में से किसी अधिकार के हनन से हो, तो तौबा के सही होने के लिए अधिकार वाले को उसका अधिकार लौटाना या माफ़ी-तलाफ़ी करा लेना ज़रूरी होगा।
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के क्षमा याचना करने का यह अर्थ नहीं है कि गुनाह होने के कारण ही आप क्षमा याचना किया करते थे। दरअसल आप ऐसा अल्लाह की इबादत में पूरी तरह समर्पित होने, अल्लाह के ज़िक्र से हार्दिक संबंध, अल्लाह के महान अधिकार से अवगत होने और अल्लाह का शुक्र अदा करने में हो जाने वाली कमियों का एहसास रखने के कारण किया करते थे। इसका एक उद्देश्य अपनी उम्मत के लिए उदाहरण प्रस्तुत करना भी था।
